रायसेन/सिलवानी, सभी शास्त्रों के रहस्य का स्रोत है देवी भागवत पुराण की कथा-आचार्य रामाधार उपाध्याय। - Ghatak Reporter

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Saturday, October 24, 2020

रायसेन/सिलवानी, सभी शास्त्रों के रहस्य का स्रोत है देवी भागवत पुराण की कथा-आचार्य रामाधार उपाध्याय।

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सभी शास्त्रों के रहस्य का स्रोत है देवी भागवत पुराण की कथा-आचार्य रामाधार उपाध्याय।  

घातक रिपोर्टर, जसवंत साहू सिलवानी
सिलवानी। 
रायसेन/सिलवानी, सभी शास्त्रों के रहस्य का स्रोत है देवी भागवत पुराण की कथा-आचार्य रामाधार उपाध्याय।

       साईं खेड़ा में लक्ष्मी नारायण मंदिर में आयोजित देवी भागवत महापुराण की कथा नवरात्रि के परम पवित्र अवसर पर आयोजित हो रही हैए जिस का समापन सोमवार को होगा कथा व्यास आचार्य डॉ रामाधार उपाध्याय ने कहा कि सभी शास्त्रों के रहस्य का स्रोत देवी भागवत पुराण हैए इसकी परम पवित्र कथा जो मानव के कल्याण के लिए हैए उसका सृजन महर्षि वेदव्यास ने समस्त शास्त्रों के समन्वित गुप्त रहस्य के रूप में  समाहित कर दिया है। 
रायसेन/सिलवानी, सभी शास्त्रों के रहस्य का स्रोत है देवी भागवत पुराण की कथा-आचार्य रामाधार उपाध्याय।


देवी भागवत में व्यक्ति के लिए मातृ वंदनाए शक्ति आराधना एवं ज्ञान एभक्तिए वैराग्य से ओतप्रोत कथाओं का मार्गदर्शन प्राप्त होता है। जिससे कि मानव के जीवन में जितनी कमियां हैंए वह दूर कैसे होंए इसका बड़ा सुंदर चित्रण महर्षि वेदव्यास जी के माध्यम से किया गया है ।आगे पंडित उपाध्याय जी कहते हैं कि मानव जीवन में व्यक्ति को चाहिए कि वह निरूस्वार्थ कर्म करे। स्वार्थ के वशीभूत होकरए किया गया कर्म निष्फल होता है। पवित्र आचरण से संयुक्त होकर कर्म करना चाहिए। संसार में जो दायित्व मिला हैए वह प्रभु की कृपा का प्रसाद हैए उसे बड़ी लगन से एइमानदारी से निभाना चाहिए। कभी.कभी ऐसाअवसर आता है एकि व्यक्ति अपने जीवन में बहुत परिश्रम करता है एलेकिन उसे मनोवांछित फल नहीं प्राप्त होता है एतो यह उसके पूर्व कर्मों का प्रतिफल हैए जो उसके मन के अनुकूल उसे फल प्राप्त नहीं हो रहा है। इसलिए मानव को चाहिए कि कर्म की पवित्रता और वित्त की पवित्रता दोनों समाहित हो ।पवित्रता पूर्वक कर्मस्त रहकरए धन कमाया जाए ।आगे आचार्य उपाध्याय जी ने कहा कि हमारे जीवन में मानव मात्र का सम्मानए हमें करना चाहिए और विशेषता माताओं बहनों का बेटियों का सम्मान करना हमारा धर्म होना चाहिए ।तभी हम मां जगत जननी आदिशक्ति की कृपा प्राप्त कर सकते हैं। मां जगत जननी के भक्त कहलाने के अधिकारी हम लोग हो सकते हैं ।व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने धर्म का सम्मान करें और जिस धर्म में हमारा जन्म हुआ है एउस धर्म ही जीवन यापन करें एकिसी दूसरे धर्म में जाना सबसे बड़ा दुर्भाग्य है। जिस पवित्र धर्म को हमारे माता.पिता ने हमारे वयोवृद्ध जनों ने आत्मसात किया थाए अपना के रखा था। हम उसी में अपना जीवन यापन करें। उसकी रक्षा में अपना जीवन समर्पित करें। यदि कोई हमारे धर्म की निंदा करता हैए तो हम उसको सहजता में समझाएं कि हमारा धर्म विश्व कल्याण के लिए हैए समस्त स्वार्थों की सीमा से परे एहमारा सनातन धर्म है एजो कि समस्त धर्मों के मूल में समाहित है ।इसलिए इस मानवता से ओतप्रोत धर्म का हमें सदैव सम्मान करते हुए एअपने जीवन का निर्वाहए इस विकराल कलिकाल में पवित्रता से करना चाहिए।

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