रायसेन/सिलवानी, जिसका मन निर्मल होता है, वो भगवान को पाता है - जगद्गुरु स्वामी श्री रामभद्राचार्य जी महाराज। - Ghatak Reporter

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Friday, May 12, 2023

रायसेन/सिलवानी, जिसका मन निर्मल होता है, वो भगवान को पाता है - जगद्गुरु स्वामी श्री रामभद्राचार्य जी महाराज।

जिसका मन निर्मल होता है, वो भगवान को पाता है - जगद्गुरु स्वामी श्री रामभद्राचार्य जी महाराज।

  • कांग्रेस पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव एवं जिला अध्यक्ष देवेंद्र पटेल ने कथा की श्रवन।

रायसेन/सिलवानी, जिसका मन निर्मल होता है, वो भगवान को पाता है - जगद्गुरु स्वामी श्री रामभद्राचार्य जी महाराज।

घातक रिपोर्टर, जसवंत साहू, रायसेन/सिलवानी।
सिलवानी। नगर के रघुकुल फार्म हाउस पर श्रीमद् भागवत महापुराण का आयोजन शिव वरण रघुवंशी, प्रशांत रघुवंशी के द्वारा उनके गुरु जी आचार्य डॉ. रामाधार शर्मा जी की पुण्य स्मृति में किया जा रहा है। व्यासपीठ पर विराजमान जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामभद्राचार्य जी महाराज ने छठवें दिन की सभा को संबोधित करते हुए कहा कि जिसका मन निर्मल होता है, वह भगवान को पाता है। भगवान उसी व्यक्ति के मन में निवास करते हैं जिसमें निर्मलता, पवित्रता होती है। छ्ल-छिद्र नहीं होता है। भगवान उसी पर कृपा करते हैं। परमात्मा बड़े दयालु हैं, उनकी जब कृपा हो जाती है, तो संसार में जितने भी लोग होते हैं, सब अनुकूल व्यवहार करने लगते हैं। समस्त अनुकूलता में जीवन शांतिमय और सुखमय में हो जाता है इसलिए कपट और कूट नीतियों को त्याग कर, परमात्मा को हृदय में स्थान देने के लिए सभी को प्रयास करना चाहिए। मानस जी में भी भगवान स्वयं कहते हैं, कि निर्मल मन जन सो मोहि पावा, मोहि कपट छल छिद्र न भावा। अतः परमात्मा को प्राप्त करने की सबसे पहली प्राथमिकता निर्मल मन है। मन में यदि किसी भी प्रकार के विपरीत भाव होंगे तो हृदय में परमात्मा कैसे विराजमान होंगे। परमात्मा को विराजमान करना है तो मन की पवित्रता बहुत अनिवार्य है। जो सज्जन व्यक्ति होते हैं उनका मन निर्मल होता है। इसलिए अनिवार्यता है कि मन की पवित्रता के लिए प्रयास करो। आगे परम पूज्य जगतगुरु ने कहा कि लोगों में बातचीत में यह चलन बढ़ गया है कि वह इस तरह से बोलने लगे हैं कि भगवान राम ज्ञान के प्रतीक हैं।

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जबकि वस्तुतः यह बोलना चाहिए कि भगवान राम ज्ञान के स्वरूप हैं। प्रतीक का आशय वह होता है जहां जीवंतता नहीं होती है और जीवंतता यदि है तो वह स्वरूप बन जाता है। इसलिए भाषा को समझ कर बोलना चाहिए। प्रतीक जहां बोलना है वहीं बोलना चाहिए। इसलिए मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम को ज्ञान के प्रतीक ना कहकर, यह कहना चाहिए कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ज्ञान के स्वरूप हैं। आगे जगतगुरु जी ने कहा कि परमात्मा की विभिन्न लीलाओं के माध्यम से हमें जीवनयापन कितनी मर्यादा और पवित्रता में करना चाहिए यह प्रेरणा प्राप्त होती है। प्रत्येक संकट में भगवान भक्तों की मदद करने के लिए प्रकट होते हैं। इसी कलयुग में भगवान का प्राकट्य हुआ है, इस बात को नहीं भूलना चाहिए और निरंतर भगवान का चिंतन करना चाहिए। बुद्धि कीर्तन नहीं करने देती है, लेकिन बौद्धिकता को परे रखकर पूरी तन्मयता के साथ भगवान का कीर्तन करना चाहिए। तभी उन परमात्मा की कृपा प्राप्त होगी। पूज्य महाराज श्री ने वर्तमान परिस्थितियों में कैसे जीवन यापन करना चाहिए इस विषय में संबोधित करते हुए कहा कि संसार में सनातन से प्राचीन कुछ नहीं और जो सनातन को नष्ट करने की बात करेगा, वह स्वयं नष्ट हो जाएगा। वर्तमान परिस्थितियों में भी सनातन धर्म की रक्षा करने की, सेवा करने की जो बात करेगा, वही शासन सत्ता में रह पाएगा।

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उन्होंने इस बात को उद्धृत करके कहा कि जो हिंदू हित की बात करेगा वही देश पर राज करेगा। कहने का आशय यह है कि व्यक्ति संगठन यदि सनातन का विरोध करेंगे तो वह शासन सत्ता में नहीं रह पाएंगे, इस बात की दृढ़ता हम लोगों को बनाकर रखना है। हम लोगों की एकता ही सर्वोपरि है। इसलिए प्रत्येक सनातनी को अंतरात्मा से संगठित होकर राष्ट्र के निर्माण में सहयोग करने के लिए तत्पर होना चाहिए। कथा के दौरान पंडित राम कृपाल वेदाचार्य को स्वामी रामभद्राचार्य जी ने उनके तुलसी पीठ चित्रकूट के माध्यम से पौराणिक मार्तंड की उपाधि से अलंकृत किया। जिसका समर्थन संपूर्ण सभा में उपस्थित विद्वानों ने और धर्म अनुरागी सज्जनों ने करतल ध्वनि से किया। वही कांग्रेस के पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव, पूर्व विधायक कांग्रेस जिला अध्यक्ष देवेंद्र पटेल, संजय शर्मा विधायक, उदयपुरा विधायक देवेंद्र पटेल, कांग्रेस वरिष्ट नेता हाकम सिंह रघुवंशी, ब्लॉक अध्यक्ष संदीप शर्मा, योगेंद्र सिंह, कवींद्र सिंह, नीलमणि, सुरेंद्र सिंह शाह, महेंद्र सिंह वर्धा, भूपेंद्र चौधरी, अजय पटेल, वीर रघुवंशी आदि ने कथा श्रवन कर व्यास गादी की पूजा अर्चना कर जगत गुरु राम भद्राचार्य जी से आशीर्वाद प्राप्त किया। कथा का संचालन आचार्य डॉक्टर बृजेश दीक्षित ने किया। कथा का विश्राम 13 मई शनिवार को होगा। कथा के आयोजक शिववरण सिंह, प्रशांत सिंह ने सभी का आभार माना।

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