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Tuesday, November 21, 2023

रायसेन/बरेली, कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी पर आंवले के पेड़ की पूजा के साथ रखा गया व्रत।

कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी पर आंवले के पेड़ की पूजा के साथ रखा गया व्रत।

रायसेन/बरेली, कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी पर आंवले के पेड़ की पूजा के साथ रखा गया व्रत।

घातक रिपोर्टर, राकेश दुबे, रायसेन/बरेली।
बरेली। कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी पर आंवले के पेड़ की पूजा के साथ महिलाओं के द्वारा व्रत रखा गया, इसे आंवला नवमी कहते हैं। ऐसा करने से मिलने वाला पुण्य कभी खत्म नहीं होता है इसलिए इसे अक्षय नवमी भी कहते हैं। आंवला नवमी पर हनुमानगढ़ी में स्थित अवल पीपली की पूजन करने के लिए हजारों की संख्या में महिला प्रातः समय से ही पहुंचना प्रारंभ हो गई थी। धार्मिक मान्यता है कि आंवला नवमी स्वयं सिद्ध मुहूर्त भी है। इस दिन दान, जप व तप सभी अक्षय होकर मिलते हैं, अर्थात इनका कभी क्षय नहीं होता हैं। भविष्य, स्कंद, पद्म और विष्णु पुराण के मुताबिक इस दिन भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है। पूजा के बाद इस पेड़ की छाया में बैठकर महिलाओं ने खाना खाया। ऐसा करने से हर तरह के पाप और बीमारियां दूर होती हैं।


इस दिन किया गया तप, जप, दान इत्यादि व्यक्ति को सभी पापों से मुक्त करता है, तथा सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला होता है। कथा वाचन देवी रत्नमणि ने बताया कि आंवला नवमी पर आंवले के वृक्ष की पूजा और इसके वृक्ष के नीचे भोजन करने की प्रथा की शुरुआत करने वाली माता लक्ष्मी मानी जाती हैं। प्रचलित कथा के अनुसार एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करने आईं। रास्ते में भगवान विष्णु और शिव की पूजा एक साथ करने की उनकी इच्छा हुई। लक्ष्मी मां ने विचार किया कि एक साथ विष्णु और शिव की पूजा कैसे हो सकती है। तभी उन्हें ख्याल आया कि तुलसी और बेल के गुण एक साथ आंवले में पाया जाता है। तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय है और बेल शिव को। आंवले के वृक्ष को विष्णु और शिव का प्रतीक चिह्न मानकर मां लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष की पूजा की। पूजा से प्रसन्न होकर विष्णु और शिव प्रकट हुए। लक्ष्मी माता ने आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर विष्णु और भगवान शिव को भोजन कराया, इसके बाद स्वयं ने भोजन किया। जिस दिन यह घटना हुई उस दिन कार्तिक शुक्ल नवमी थी तभी से यह परम्परा चली आ रही है।

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