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Sunday, February 21, 2021

रायसेन/बरेली, गायत्री महायज्ञ में उमड रहा श्रद्धालुओं का सैलाब।

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गायत्री महायज्ञ में उमड रहा श्रद्धालुओं का सैलाब।

  • बारह वर्ष तक शुकदेव जी माता के गर्भ में रहे - ब्रह्मचारी जी।

रायसेन/बरेली, गायत्री महायज्ञ में उमड रहा श्रद्धालुओं का सैलाब।

घातक रिपोर्टर, राकेश दुबे, रायसेन/बरेली।
बरेली। नगर सीमा से कुछ दूर ग्राम पंचायत धोखेडा सीमा में आयेाजित नवदिवसीय श्री गायत्री पंचकुण्डात्मक एवं संगीत मयी श्रीमद देवी भागवत पुराण के दूसरे दिन कथा स्थल के पास बने गायत्री महायज्ञ की प्रात: समय आयोजन के प्रेरणास्रोत श्री ब्रह्मचारी जी कुसुमखेडा वालों और यज्ञ में उपस्थित ब्रह्मचारियों ने यज्ञ की पूजन कर यज्ञ प्रारंभ करवाया। यज्ञ में धर्मलाभ लेने के लिए जहां बरेली नगर के सैकडों श्रद्धालु पहुंच रहे हैं वहीं ग्राम पंचायत धोखेडा सहित आसपास के श्रद्धालु यज्ञ की परिक्रमा करने पहुंच रहे हैँ। जहां एक और यज्ञ का धर्मलाभ श्रद्धालु कमा रहे हैं वहीं चंदकदम की दूरी पर चल रही श्रीमद देवी भागवत पुराण के पांडाल में भी सैकडों की संख्या में नर और नारी पहुंच कर कथा का रसपान ग्रहण कर रहे हैँ। वहीं रात्रि समय कथा के मंच पर ही मथुरा वृंदावन से यहां पर आये कलाकारों के द्वारा रासलीला की जा रही है। प्रथम दिन श्री कृष्ण जन्म ओर द्वितीय दिन नंदोत्सव पूतना वध की रासलीला की गई। श्रीमद देवी भागवत पुराण का वाचन कर रहे कथावाचक कथा के दूसरे दिन श्रद्धालुओं को बताते हैँ कि द्वापर युग तक पृथ्वी पर इस प्रकार की शक्तियों का वास था जिनमें संतान की उत्पत्ति के लिए संभोग अनिवार्य शर्त नहीं थी। इसी प्रकार शुक देव जी के जन्म की कथा भी अलग है। शुकदेव महाभारत काल के प्रख्यात मुनि थे। ये वेदव्यास जी के अयोनिज पुत्र थे। अयोनिज जिनकी उत्पत्ति माता के शुक्राणुओ से न हुई हो। शुक देव बचपन से ही बहुत बुद्धिमान थे ओर बचपन में ही आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए वनों में तपस्या करने चले गये थे। शुकदेव जी ने ही परिक्षित को श्रीमद भागवत पुराण सुनाया था।

रायसेन/बरेली, गायत्री महायज्ञ में उमड रहा श्रद्धालुओं का सैलाब।

शुकदेव जी ने व्यास जी से महाभारत भी पढा ओर उसे देवताओं को सुनाया। कम आयु में ही ब्रह्मलीन हो जाने वाले मुनियों में ही उनका परम स्थान है। कथा व्यास जी बताते हैं कि शुक देव जी के जन्म के बारे में यह कहा जाता है कि यह बारह वर्ष तक माता के गर्भ में रहे। इसकी कथा कुछ इस प्रकार है, भगवान शिव पार्वती को अमर कथा सुना रहे थे, पार्वती जी को कथा सुनते-सुनते नींद आ गई। माता पार्वती के सोने के बाद उनकी जहां जगह पर वहां बैठे एक शुक अर्थात तोता ने हुंकारी भरना प्रारंभ कर दिया। जब भगवान शिव को यह बात ज्ञात हुई तब उन्होंने शुक को मारने के लिए अपना त्रिशूल छोडा, शुक जान बचाने के लिए तीनों लोकों में भागता रहा भागते-भागते वह व्यास जी के आश्रम में आया और सूक्ष्म रूप बनाकर उनकी पत्नि के मुख में घुस गया ओर उनके गर्भ में रह गया। ऐंसा कहा जाता है कि यह बारह वर्ष तक गर्भ से बाहर ही नहीं निकले। जब भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं आकर आश्वासन दिया कि बाहर निकलने पर तुम्हारे ऊपर माया का प्रभाव नहीं पडेगा तभी यह गर्भ से बाहर निकले और व्यास जी के पुत्र कहलाऐ।

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