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Saturday, April 17, 2021
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नरसिंहपुर/तेंदूखेड़ा, प्राकृतिक स्थलों को दिया जा सकता है रमणीय स्थलों का स्वरूप।
नरसिंहपुर/तेंदूखेड़ा, प्राकृतिक स्थलों को दिया जा सकता है रमणीय स्थलों का स्वरूप।
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घातक रिपोर्टर, धर्मेन्द्र साहू, नरसिंहपुर/तेंदूखेड़ा।
तेंदूखेड़ा। सतपुड़ा और विध्यांचल की सुंदर पर्वत श्रंखलाओ के बीच महाकौशल क्षेत्र की सुंदर छोटी-छोटी पर्वत श्रृंख्लाओं के बीच अपनी भौगोलिक स्थिति के ऐतिहासिक महत्वों को समेटे हुए तीन जिलों की सीमाओं पर स्थित तेंदूखेड़ा क्षेत्र प्राकृतिक स्थलों से भरा पड़ा है। लेकिन प्रशासनिक उपेक्षा और जन इच्छाओं में क्षेत्र के प्रति समर्पण की भावना कम होने के कारण इन स्थलों को रमणीय स्वरूप प्रदान नहीं किया जा पा रहा है। यदि इन सभी स्थलों को सहेजने की दिशा में शासन-प्रशासन और क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि रूचि ले ले तो इन समूचे प्राकृतिक स्थलों को एक सुंदर स्पॉट बनाकर भ्रमण और पिकनिक पार्टियों के साथ मॉर्निंग वॉक के लिए स्वच्छ आवोहवा वाले स्थल बनाये जा सकते है। जिनमें मृगन्नाथ की पहाड़ी, कन्हैरी की पहाड़ी, दाने बाबा की पहाड़ी, धांदूबाबा की पहाड़ी, उमाहा की पहाड़ी, 52 भुजा की पहाड़ी के साथ ढिलवार का किला और ककरा घाट पावन नर्मदा का तट प्रमुख रूप से शामिल है। इन सभी स्थलों के अपने एक अलग-अलग महत्व है। और यह महत्व आज के नहीं प्राचीन काल से ही इनकी महत्वा और लोगों की आस्था इनमें जुड़ी हुई है।
ग्राम कन्हैरी और उमाहा के समीप सिद्ध बाबा की विख्यात इस पहाड़ी पर नीचे से ऊपर तक विभिन्न प्रकार की जो विशाल शिलाएं जमी पड़ी है, इनकी यह विशेषता है कि प्रत्येक शिला में पत्थर मारने से उनके अलग-अलग प्रकार के स्वर निकलते है। बुजुर्ग बताते है कि होलिका दहन पूर्व में यही से प्रारंभ होता था। होली की झांक जब आसपास ग्रामीण क्षेत्रों के लोग देख लिया करते थे फिर क्षेत्र में होली जला करती थी। लेकिन पिरामिड आकार की अब यह पहाड़ी अपने अस्थित्तव को बचाने में लगी हुई है।
ग्राम पंचायत उमरपानी के समीप स्थित दाने बाबा की पहाड़ी के पीछे विश्वकर्मा समाज के साथ-साथ क्षेत्र के लगभग हर वर्गों की आस्था इस क्षेत्र से जुड़ी हुई है। यहां पर पूर्व में कच्चा लोहा निकला करता था। और विश्वकर्मा समाज के लोग यहां जाते थे। दाने बाबा की पूजन अर्चन किया करते थे। लोहे की खुदाई में अधिक मूल्य खर्च लागत आने से यह खदाने लगभग चार दशकों से बंद पड़ी हुई है। इस लोहे की यह विशेषता थी कि इनसे बनने वाले कढ़ाई, हसिया, झारिया, तवा में कभी जंग नहीं लगती थी। आस्थाओं और मान्यताओं के चलते लोग आज भी पहुंचते है लेकिन पहाड़ी को सुंदर स्वरूप नहीं मिल सका। बडी मात्रा में वृक्षारोपण तो हुआ है लगभग 150 एकड़ का यह ऐरिया राजस्व क्षेत्र में आता है। लेकिन पहाड़ी के कारण लोगबाग ध्यान नहीं देते है।
नगर परिषद् के वार्ड क्र. 14 जामनपानी के समीप धांदूबाबा नाम से विख्यात इस पहाड़ी की मान्यता यह है कि यहां पर विराजमान बाबा से यदि किसी वर्ग का मवेशी गुम जाया करता था, आस्थापूर्वक चबूतरे पर नारियल रखने के उपरांत मवेशी सकुशल घर वापस पहुंच जाता था। लेकिन लगातार जंगल कटने और पहाड़ियों के उपेक्षित नजरिया के कारण अब यह पहाड़ी भी अपने अस्तित्व पर आंसू बहा रही है।
ग्राम पंचायत पीपरवानी के अंतर्गत आने वाली यह पहाड़ी अपने आप में काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है और मृगन्नाथ महाराज की कृपा से आस्थावानों को उनकी मनोतियां पूर्ण भी हुई है। धरातल से 1700 फुट ऊंची इस पहाड़ी पर प्राकृतिक झरने में वर्ष भर पानी रहना किसी रमणीय स्थल से कम नहीं है। इस क्षेत्र के उत्थान के लिए प्रयास किये गये। यहां पर विराजमान देवताओं की बैठक में हस्तक्षेप का हश्र भी श्राप के रूप में भोग लिया है। और उनका पाखंड भी उन्हें गर्त में ले गया है।
तेंदूखेड़ा, गाडरवारा, रायसेन और सागर जिले के सीमावर्ती ग्रामीण क्षेत्रों के लिए काफी सुविधायुक्त अनुकूल पावन पुण्य सलिला का तट ककरा घाट पर शासन-प्रशासन का उपेक्षित नजरिया आज भी जारी है। अवैद्य उत्खन्न के नाम पर दोहन तो इस क्षेत्र का खूब हुआ है और भरपूर राजस्व भी कमाया गया है लेकिन विकास की दिशा में यह घाट आज भी शासन-प्रशासन की तरफ निहार रहा है। जिस एन.टी.पी.सी. के माध्यम से करोड़ो रुपये की राशि दूसरे क्षेत्रों और जिलों में खर्च की जा रही है जबकि पानी का दोहन यहीं से हो रहा है। यदि केवल एन.टी.पी.सी. ही इस घाट के उद्यार की दिशा में प्रयास करती तो निश्चित तौर पर यह घाट सर्वसुविधा युक्त बन जाता। हर अमावस्या और पूर्णिमा त्यौहार विशेष पर होने वाली परेशानियों से भी निजात मिल जाता। समाचार पत्रों के माध्यम से तथा प्रशासन के जबाबदार अधिकारियों को मौखिक और लिखित जानकारी दिये जाने के बावजूद भी सार्थक दिशा में पहल न हो पाना सोचनीय विषय बना हुआ है।
स्वतंत्रता आंदोलन और इतिहासों में लगभग पुस्तकों के माध्यम से विद्यार्थियों को पढ़ाया जाता है लेकिन वास्तव में स्वतंत्रता की लड़ाई में अमर शहीद डेलनशाह नरवरशाह ने जिस तरीके से अंग्रेजों के छक्के छुड़ाये थे और अपने प्राणों की आहूति दी थी उनका सजीव चित्रण समीपी ग्राम ढिलवार में देखने को मिलता है। जिनके किले में अंग्रेजों ने आग लगा दी थी उन्हें फांसी के फंदे पर लटकाया था। उक्त स्थलों का उपेक्षित नजरिया प्रश्न चिन्ह लगाता है। क्षेत्रीय विधायक संजय शर्मा के माध्यम से जरूर इस स्मारक के उचित रखरखाव की दिशा में काम हुआ है। स्कूली छात्र-छात्राओं को भ्रमण के दौरान ऐतिहासिक स्थलों का निरीक्षण कराकर उन्हें इतिहास के बारे में जानकारी दी जाती है। यदि इसी क्षेत्र को काफी सुंदर रमणीक बनाकर यदि भ्रमण कराया जाये तो विद्यार्थियों को आसानी से कुछ सीखनें मिलेगा। लगभग सभी क्षेत्र अपने आप में काफी महत्वपूर्ण है। इनके उत्थान और उचित रखर-खाव की जवाबदेही सभी वर्गों की तो बनती ही है लेकिन शासन-प्रशासन यदि किसी बड़ी येाजना के माध्यम से इन क्षेत्रों को विकास की लाईन में लगा दे तो अच्छे दर्शनीय स्थल बन सकते है।
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