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Saturday, April 17, 2021

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बेड दे दो या इंजेक्शन देकर मार डालो, अब तो एम्बुलेंस मैं लगी ऑक्सीजन भी खत्म हो रही है, ऐसे मैं घर भी नहीं जा सकता, दो दिन तक भटकने के बाद नही मिला अस्पतालों मैं बेड तो बोला बेटा।
बेड दे दो या इंजेक्शन देकर मार डालो, अब तो एम्बुलेंस मैं लगी ऑक्सीजन भी खत्म हो रही है, ऐसे मैं घर भी नहीं जा सकता, दो दिन तक भटकने के बाद नही मिला अस्पतालों मैं बेड तो बोला बेटा।
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महाराष्ट्र के लगभग सभी जिलों में कोरोना का संक्रमण चरम पर है। बड़े शहर हों या छोटे हर जगह बेड, ऑक्सीजन, वेंटिलेटर और जरूरी दवाइयों की कमी है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, गढ़चिरौली और चंद्रपुर ऐसे जिले हैं, जहां संक्रमित काफी कम हैं। चंद्रपुर जिला अस्पताल के सामने 41 साल के किशोर नारशेट्टीवार कोरोना से संक्रमित होने के बाद जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं। किशोर का घर भी यहीं है, बावजूद इनका इलाज नहीं हो सका, क्योंकि वहां वेंटिलेटर बेड मौजूद नहीं था। उनके बेटे सागर ने बताया कि वह अपने पिता को एंबुलेंस में लेकर दो दिनों से वर्धा और चंद्रपुर जिले के हर सरकारी और निजी अस्पतालों का चक्कर काट चुके हैं, लेकिन कहीं भी बेड नहीं मिला। बीमार पिता को लेकर वे रात डेढ़ बजे तेलंगाना के मंचेरियाल तक गए। वहां भी उन्हें बेड नहीं मिला। लाचार होकर वापस चंद्रपुर में कोविड अस्पताल के सामने एंबुलेंस खड़ी कर दी। भरी आंखों और लड़खड़ाते जुबान से सागर कहते हैं कि अब तो एंबुलेंस में रखा ऑक्सीजन भी खत्म हो रहा है.. पापा सांसे गिन रहे हैं.. मैं क्या करूं? इस हालत में घर तो जा नहीं सकता। अच्छा होगा उन्हें बेड दे दो या फिर इंजेक्शन देकर मार दो।
पेशे से एडवोकेट राम मेश्राम ने बताया कि गढ़चिरौली जिला अस्पताल के कोविड सेंटर की बेड क्षमता करीब 300-350 है। अंदर वार्ड नंबर-3, 4, 9 और 10 इन चार वार्डों में कोरोना मरीजों को रखा गया है। ये चारों वार्ड फुल हो चुके हैं। जिसकी वजह से लगभग 70 कोविड पेशेंट को धर्मशाला में रखा गया है। उधर नर्सों का एक होस्टल है, वह भी पूरी तरह से कोरोना मरीजों से पैक है।
गढ़चिरौली में पहली लहर में जितने पेशेंट नहीं थे, उससे कहीं अधिक अब हैं। मेश्राम बताते हैं कि जिला अस्पताल में कोरोना मरीजों की संख्या बढ़ने की एक वजह यह है कि यहां अच्छी सुविधा होने की वजह से पास के भंडारा और चंद्रपुर जिले के भी कोविड पेशेंट यहां एडमिट हो रहे हैं। मरीजों की संख्या बढ़ने की एक और वजह यह है कि यहां बड़ी संख्या में लोग आरटी-पीसीआर टेस्ट करा रहे हैं। उन्होंने बताया कि यहां क्षमता से अधिक लगभग 700-800 कोरोना पेशेंट आने की वजह से स्वास्थ्य सुविधाएं चरमरा गई हैं। सिविल सर्जन डॉ. अनिल जे रुडे समेत सभी अफसर जिला अस्पताल से गायब थें। डॉ. रुडे से जब हमने बात की तो उन्होंने पहले बहुत ही गैर-जिम्मेदाराना ढंग से कोई भी जानकारी देने से इन्कार कर दिया, कहा- सूचना अधिकारी से जानकारी लो। हमने कहा, आपके आने तक हम यहीं इंतजार कर रहे हैं। पोल खुलता देख डॉ. रुडे फिर कहने लगे- मेरे पास पूरा जिला है। मैं और जिला स्वास्थ्य अधिकारी गोंडवाना होस्टल आए हुए हैं। अगर जिले में कोरोना मरीज बढ़ें तो उसकी तैयारी पहले से करनी होगी न।
चंद्रपुर में पारस जैन के पिता विनोद जैन (52) पिछले चार दिनों से प्राइवेट अस्पताल में भर्ती थे। जिन्हें अब सरकारी अस्पताल लाया गया है। पारस जैन बताते हैं कि कोरोना का नया स्ट्रेन बहुत ही खरतनाक है। पारस की मां कविता बताती हैं कि उन्होंने पिछले दिनों बेड के लिए नागपुर, यवतमाल, अमरावती तक के जिला अस्पतालों का चक्कर लगाया। नसीब से चंद्रपुर में एक बेड खाली मिल गया। उन्होंने बताया कि चंद्रपुर में कोरोना फैलने के लिए लोग खुद जिम्मेदार हैं। उम्रदराज मुरलीधर रामचंद्र पिंपलकर शनिवार से चंद्रपुर के अस्पताल के एक कोने में पड़े हुए हैं। यहां उनकी पत्नी एडमिट है। मुरलीधर जहां बैठे मिले, वहां उनकी जरूरत की चीजें भी अलग-अलग थैले में रखी दिखीं। उन्हें भी लगता है कि जनता कोरोना के नियमों का पालन नहीं कर रही और मास्क नहीं लगा रही है। जिसकी वजह से चंद्रपुर जिले में कोरोना के केस बढ़ रहे हैं।
गढ़चिरौली जिला अस्पताल के कोविड वार्ड के सामने स्थित एक पेड़ के नीचे भंडारा जिले की चिचोरी गांव के सचिन निमजे मिले। सचिन ने बताया कि 11 अप्रैल को उसने अपनी 60 साल की मां को यहां एडमिट कराया था। मगर दूसरे दिन रात 8 बजे उसकी मौत हो गई। सचिन के बगल में बैठे उनके रिश्तेदार ज्ञानेश्वर विठोबा झकाते ने बीच में बात काटते हुए कहा कि मौत कैसे ही हुई कुछ पता नहीं चल रहा है। ऑक्सीजन बराबर दिया गया या नहीं, इसकी भी कोई जानकारी नहीं है। ज्ञानेश्वर इस बात से काफी नाराज दिखे कि उनके रिश्तेदार की मौत हुए 24 घंटे से ज्यादा बीत चुके फिर भी उन्हें शव नहीं दिया जा रहा है। उन्होंने आगे कहा, जिला अस्पताल की ओर से उन्हें बताया गया कि कोविड पेशेंट के शव देने के लिए नंबर लगता है। श्मशान में जब अंतिम संस्कार करने लिए जगह उपलब्ध होगी तब बॉडी दी जाएगी। हम कम पढ़े लिखे लोग हैं। हमें समझ में नहीं आ रहा है कि बॉडी देने में ये लोग और कितना दिन लगाएंगे।
मुनगंटीवार बताते हैं कि कोरोना के इलाज में इस्तेमाल होने वाले इंजेक्शन के बारे में भी राज्य सरकार ने गंभीरता नहीं दिखाई। यदि गंभीरता रखी होती, तो इंजेक्शन बनाने वाली कंपनियों से बात करनी चाहिए थी। तीन कंपनियों ने तो अपनी फैक्ट्री ही बंद कर दी, क्योंकि जब दवा और इंजेक्शन बाजार में बिकेंगे ही नहींं, तो कोई उसे क्यों बनाएगा। महाराष्ट्र सरकार को इंजेक्शन बनाने वाली कंपनियों से पहले से ही बातचीत करके रखनी चाहिए थी। उन्हें कहना चाहिए था कि इंजेक्शन का प्रोडक्शन करके रखो। यदि इस्तेमाल नहीं हो पाया, तो हम अपने रिजर्व स्टॉक के लिए रखेंगे।
महाराष्ट्र के पूर्व कैबिनेट मंत्री सुधीर मुनगंटीवार बताते हैं कि जिले में बेड नहीं मिल रहे। चंद्रपुर से तेलंगाना राज्य का आसिफाबाद सिर्फ 65 किमी की दूरी पर है। यहां बड़ी संख्या में कोरोना मरीजों के लिए बेड, डॉक्टर और ऑक्सीजन की पाइपलाइन उपलब्ध है। सिर्फ रेमडेसिविर इंजेक्शन उपलब्ध कराने की जरूरत है। इसी प्रकार चंद्रपुर से 150 किमी दूर करीमनगर और 110 किमी दूर आदिलाबाद है। यहां भी चंद्रपुर जिले के कोरोना मरीजों का इलाज संभव है। इस संबंध में तेलंगाना के स्वास्थ्य मंत्री और वित्त मंत्री हरीशराव से प्राथमिक स्तर की बातचीत हुई है। यदि महाराष्ट्र सरकार तेलंगाना सरकार के साथ MOU करती है, तो राज्य के कोरोना मरीजों को इलाज कराने में मदद होगी।
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