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Saturday, July 31, 2021

राज्य मंत्री परमार ने मंत्रालय में 'प्राकृतिका' टेरेस गार्डन का किया लोकार्पण।

राज्य मंत्री परमार ने मंत्रालय में 'प्राकृतिका' टेरेस गार्डन का किया लोकार्पण।

राज्य मंत्री परमार ने मंत्रालय में 'प्राकृतिका' टेरेस गार्डन का किया लोकार्पण।

भोपाल। स्कूल शिक्षा (स्वतंत्र प्रभार) और सामान्य प्रशासन राज्य मंत्री इंदर सिंह परमार ने कहा कि वर्तमान में मानव समाज अपने विकास के लिए प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रहा है, जिससे कांक्रीट जंगलों में बढ़ोतरी होती जा रही है। इसके प्रतिकूल प्रभाव ग्लोबल वार्मिंग, ग्रीन हाउस गैसेस में वृद्धि, प्रदूषण इत्यादि रूप में दृष्टिगोचर होने लगे हैं। इसलिए आवश्यक है कि विकास के साथ प्रकृति का भी संतुलन बनाया जाएं। इससे न सिर्फ पर्यावरण सुधारने में सहायता प्राप्त होगी बल्कि प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण एक स्वच्छ एवं स्वस्थ वातावरण निर्मित होगा। सामान्य प्रशासन राज्य मंत्री परमार आज वल्लभ भवन के एनेक्सी क्रमांक-2 के चौथे तल पर टेरेस गार्डन 'प्राकृतिका' का लोकार्पण कर संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर परमार ने 'प्राकृतिका' को विकसित करने में अहम योगदान देने वाले वाल्मी संस्थान के अधिकारी और कर्मचारियों को रुद्राक्ष का पौधा भेंट कर उनका उत्साहवर्धन किया। प्रमुख सचिव स्कूल शिक्षा रश्मि अरुण शमी, आयुक्त लोक शिक्षण जयश्री कियावत, आयुक्त राज्य शिक्षा केंद्र धनराजू एस, संचालक वाल्मी संस्थान उर्मिला शुक्ला, उप सचिव अनुभा श्रीवास्तव, उप सचिव सामान्य प्रशासन डी.के. नागेन्द्र सहित स्कूल शिक्षा, सामान्य प्रशासन और पंचायत एवं ग्रामीण विभाग के अधिकारी और कर्मचारी उपस्थित थे।

ईको फ्रेंडली 'प्राकृतिका' टेरेस गार्डन

'प्राकृतिका' टेरेस गार्डन को मध्यप्रदेश जल एवं भूमि प्रबंधन संस्थान, भोपाल द्वारा ईको फ्रेंडली पद्धति से विकसित किया है। टेरेस गार्डन में आम, कचनार, मोगरा, अर्जुन, पीपल, बेलिया चमेली, सीता अशोक, हैंगिंग ग्रास, रुद्राक्ष, हर्रा, गूलर, शीशम, आँवला, गरुड़ आदि के पौधे रोपित किये गए है। 'प्राकृतिका' में इको फ्रेंडली सौंदर्यीकरण के लिए विभिन्न औषधीय, सुगंधित और वन प्रजातियों का चयन कर रोपण किया गया है। सांस्कृतिक परिवेश की पृष्ठभूमि निर्मित करने के लिए मांडना और लाइन आर्ट द्वारा चित्रण किया गया है। टेरेस गार्डन के वातावरण को और अधिक सुंदर बनाने के लिए विभिन्न जगह पर हैंगिंग प्लांट्स भी लगाए गए हैं। वाल्मी संस्थान ने 'वाल्मी शीघ्र वन विकास पद्धति का उपयोग किया है। इस पद्यति में एक वर्ष में घने जंगल की गारंटी की अवधारणा एवं तकनीक का उपयोग कर कांक्रीट सतह पर प्राकृतिक हरियाली एवं सौदर्यीकरण विकसित करने का कार्य किया है। यह तकनीक पूर्ण रुप से जैविक है, जिसमें एक मीटर गहराई के बेड को विभिन्न किस्म के कार्बनिक पदार्थों जैसे धान का भूसा, पेरा, गोबर की खाद, जीवामृत, घन जीवामृत, वर्मीकंपोस्ट इत्यादि को मिट्टी के साथ मिलाकर तैयार किया गया है। इन बेड्स में विभिन्न प्रजातियों के पौधों का रोपण रैंडम आधार पर किया जाता है। रोपित पौधों में केनोपी, वृक्ष, उप वृक्ष एवं झाड़ीदार श्रेणी के पौधों को एक निश्चित अनुपात में लगाया जाता है। ताकि जल्द सूर्य का प्रकाश और पोषक तत्वों के लिए आपसी प्रतिस्पर्धा न होकर मित्रवत व्यवहार रहे। पौधा-रोपण के बाद वाष्पीकरण द्वारा पानी का नुकसान न हो इसलिए जैविक पलवार का उपयोग किया जाता है। इस विधि में पौधों का विकास अत्यंत तीव्र गति से होता है। इसलिए पौधों को सहारा देने के लिए बाँस की डंडियों का उपयोग प्रारंभिक अवस्था में ही किया जाता है।

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