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Thursday, March 16, 2023
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रायसेन/बरेली, 84 लाख योनिया पार कर लेने के बाद, अच्छे कर्म के आधार पर मिलता है मनुष्य का जन्म - कथावाचक ब्रह्मचारी जी।
रायसेन/बरेली, 84 लाख योनिया पार कर लेने के बाद, अच्छे कर्म के आधार पर मिलता है मनुष्य का जन्म - कथावाचक ब्रह्मचारी जी।
घातक रिपोर्टर, राकेश दुबे, रायसेन/बरेली।
बरेली। नरसिंह टेकरी पर चल रही श्रीराम कथा के द्वितीय दिवस कथावाचक ब्रह्मचारी जी कथा पंडाल में बैठे श्रद्धालुओं को कथा का रसपान कराते हुए बताते हैं की भगवान श्रीराम का जन्म लगभग एक करोड़ 71 लाख साल पूर्व हुआ, पर भगवान श्री राम के गुण और विचार ऐसे हैं कि मानव जाति चाहते हुए भी आज तक उनको नहीं भुला पा रही है। आज हम सभी को यह निश्चय करना चाहिए कि हम इस कथा को सिर्फ सुनेंगे नहीं अपितु हमारे आचरण में उतारने का प्रयास करेंगे। आगे की कथा में कथावाचक ने बताया हमारी भारत धरा पर पुरातन कल से वैदिक सनातन संस्कृति का पालन होते आया है। पर धीरे-धीरे इस वैदिक सनातन संस्कृति से वैदिक शब्द निकल गया और सिर्फ सनातन संस्कृति बची और आज ऐसा काल आया की जिसमें हम सनातन को भी छोड़कर सिर्फ एक शब्द संस्कृति जिसका नाम हिंदू संस्कृति की ओर बढ़ रहे हैं। जब-जब इस तरह पर वैदिक सनातन संस्कृति का हरण हुआ है, तब-तब भारत पतन की ओर अग्रसर हुआ है। आज हम सब भारत वासियों का कर्तव्य है कि हम हमारे धर्म ग्रंथ वेदों का पालन कर वैदिक संस्कृति की रक्षा करें। कथावाचक आगे कहते हैं कि सनातन धर्म के अनेक ग्रंथों में 84 लाख योनियों के बारे में बताया गया है। कहा जाता है 84 लाख योनियां पार कर लेने के बाद अच्छे कर्मों के आधार पर किसी को मनुष्य का जन्म मिलता है। लेकिन ये 84 लाख योनियां वाकई में क्या है। इसके बारे में शायद ही कोई जानता हो। पद्म पुराण में इन 84 लाख योनियों के बारे में विस्तार से बताया गया है। भगवान परशुराम के बारे में यह तो सभी जानते हैं कि उन्होंने 21 बार इस धरती से क्षत्रियों को मिटाया, किंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि उन्होंने इतना कड़ा फैसला किन परिस्थितियों में लिया। आखिर ऐसी कौन सी घटना हो गई थी, जिससे वह इतना अधिक उत्तेजित हो गए कि एक जाति विशेष के लोगों को नष्ट करने पर उतारू हो गए। लोक कल्याण के लिए भगवान विष्णु सहित अन्य भगवान भी समय-समय पर अवतार लेते रहे हैं। भगवान परशुराम भी विष्णु जी के अवतारों में से एक है। उन्होंने ऋषि जमदग्नि और रेणुका के गर्भ से जन्म लिया था। वह अपने माता-पिता के परम आज्ञाकारी और उपासक थे। एक बार राजा सहस्त्रार्जुन भारी सेना के साथ वन को निकले और ऋषि जमदग्नि के आश्रम में रुके। वहां पर उन्हें ऋषि की कामधेनु गाय बहुत पसंद आई, जिसके कारण ही ऋषि राजा और उनके सैनिकों का यथोचित आदर सत्कार कर सके थे।
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