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Sunday, May 14, 2023

रायसेन/सिलवानी, बिना स्वरूप के परमात्मा की परिकल्पना नहीं की जा सकती - स्वामी रामभद्राचार्य जी।

बिना स्वरूप के परमात्मा की परिकल्पना नहीं की जा सकती - स्वामी रामभद्राचार्य जी।

  • जनपद अध्यक्ष वरिष्ट भाजपा नेता ठाकुर तरुवर सिंह राजपूत ने कथा की श्रवण।

रायसेन/सिलवानी, बिना स्वरूप के परमात्मा की परिकल्पना नहीं की जा सकती - स्वामी रामभद्राचार्य जी।

घातक रिपोर्टर, जसवंत साहू, रायसेन/सिलवानी।
सिलवानी। सिलवानी नगर के रघुकुल फार्म हाउस पर शिव वरण सिंह रघुवंशी एवं प्रशांत सिंह रघुवंशी के द्वारा आयोजित श्रीमद्भागवत महापुराण कथा के विश्राम दिवस के अवसर पर व्यासपीठ पर विराजमान पूज्य जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य जी महाराज ने कहा कि परमात्मा के स्वरूप को हम स्वरूप में ही बांधते हैं। बिना स्वरूप के परमात्मा की कल्पना नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि निराकार से आशय वह है जिनके आकार की कोई उपमा नहीं हो सकती। निराकार वह है जो परमात्मा का स्वरूप पूर्णता को लिए हुए है और वह पूर्णता सभी जगह विद्यमान है। निराकार तो समस्त आकारों से संबंधित है। निराकार उसको नहीं कहते जिसका आकार नहीं होता है। निराकार उसको कहते हैं, जो संपूर्ण आकारों में समाहित हो वह निराकार है। जिसका आकार नहीं होता उसको अनाकार कहते हैं। जबकि ब्रह्म का शरीर आकाश के समान है, जैसे आकाश नीले वर्ण का है उसी प्रकार ब्रह्म का शरीर भी नीला है इसलिए उनको निराकार कहा गया है। वह नीले आकार के परम पिता परमेश्वर अपने स्वरूप को निर्धारित करके संसार में व्याप्त हैं। जगत गुरु जी ने उद्धव जी और विदुर जी की चर्चा का वर्णन करते हुए कहा कि भगवान मानव लीला में उपयुक्त जिस शरीर को स्वीकार करते हैं और अपनी योगमाया को वह शरीर दिखाते हुए कहते हैं कि यह शरीर जगत में लीला के लिए धारण किया गया है।

रायसेन/सिलवानी, बिना स्वरूप के परमात्मा की परिकल्पना नहीं की जा सकती - स्वामी रामभद्राचार्य जी।

विभिन्न लीला करने के लिए स्वरूपों का निर्धारण उन प्रभु के द्वारा किया जाता है। कभी-कभी तो इतने दिव्य स्वरुप भगवान धारण कर लेते हैं कि उसके सौंदर्य को देखकर, उसकी आभा को देखकर वह स्वयं अचंभित होते हैं। आगे जगत गुरु जी ने कहा कि भगवान अध्यात्म विद्या पर ही विश्वास करते हैं, अध्यात्म से संबंधित व्यक्तित्व जिस व्यक्ति का है, वह परमात्मा को प्राप्त करता है और अध्यात्म विद्या ही आत्मविद्या है, जो कि हमारे लिए आत्म जागरण का कार्य करती है। अपनी आत्मा को परमात्मा में लीन करने का कार्य इसी अध्यात्म विद्या के माध्यम से होता है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति को अपने जीवन में, भगवत ज्ञान को बड़े तन्मयता से, बड़ी एकाग्रता से और बड़े धैर्य के साथ ग्रहण करना चाहिए। महाराज श्री कहते हैं कि जिस प्रकार अमृत का पान किया जाता है उसी प्रकार अध्यात्म विद्या को ग्रहण किया जाता है। उन्होंने कहा कि अमृत का पान धीरे-धीरे करना चाहिए। इसी प्रकार कोई ज्ञान की बात हमें प्राप्त हो रही है तो एक-एक करके हृदय में उतारना चाहिए। भगवान के गुणानुवाद हृदय में धारण करना अध्यात्म विद्या का ही अंग माना गया है। आगे जगत गुरु जी ने श्रीमद्भागवत में वर्णित विभिन्न लीलाओं का वर्णन करते हुए कहा कि भगवान श्री कृष्ण का जो स्वरूप है वह समस्त कलाओं से परिपूर्ण है। भगवान का स्वरूप सुंदर की परिकल्पना से सर्वश्रेष्ठ है, इससे सुंदर कुछ हो ही नहीं सकता। जो आभूषण हैं वह आभूषण भगवान के शरीर की शोभा नहीं बढ़ाते हैं। बल्कि यदि भगवान के शरीर में जो आभूषण हैं तो वह भी उनके शरीर में पहुंचकर शोभायमान हो जाते हैं। वह भी नवीन शोभा को प्राप्त कर लेते हैं। ऐसा विलक्षण शरीर भगवान का है जिसकी कल्पना मात्र से ही समस्त भक्तों के हृदय में परम आनंद की प्राप्ति होती है।

रायसेन/सिलवानी, बिना स्वरूप के परमात्मा की परिकल्पना नहीं की जा सकती - स्वामी रामभद्राचार्य जी।

आगे जगत गुरु जी ने कहा यह भाव आकाश शरीरं ब्रह्म की अवधारणा को पूर्ण करता है इसलिए श्रीमद्भगवद्गीता में जो स्वरूप प्रकट किया गया है वही स्वरूप सभी को मोहित करने के साथ-साथ अनंत ज्ञान को भी प्रदान करने का द्योतक है। आगे जगत गुरु जी ने कहा कि हमें इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि सनातन संसार के समस्त धर्मों में श्रेष्ठ है और 21वीं सदी सनातन की सदी होगी। यहाँ उन्होंने  वक्ताओं के विषय में कहते हुए कहा कि वक्ताओं को बड़ी मर्यादा में, अनुशासन में प्रवचन देना चाहिए क्योंकि वर्तमान में जो श्रोता हैं वह पढ़े-लिखे हैं। उनमें चिंतन करने की सामर्थ है इसलिए हमें धर्म का जो मर्म है उसे बड़ी सावधानी से, सरलता से बताना चाहिए। आगे जगत गुरु जी ने सनातन धर्म की एकता के लिए उद्बोधन देते हुए कहा कि किसी भी तरह के जाति पाती बंधन को त्याग दें, तभी सनातन मजबूत होगा। हमारे सभी सनातन धर्म को मानने वाले, व्यक्तियों में मधुर आत्मीयता होनी चाहिए। एक दूसरों को समझ कर उनका सहयोग करना, उनके प्रति समर्पित रहना, बिना भेदभाव के एक दूसरे का सहयोग करना और परस्पर सहयोग का भाव, प्रेम का भाव होना चाहिए तभी सनातन सुदृढ़ होगा। जातिगत भेदभाव का विरोध करते हुए महाराज श्री ने कहा कि समस्त मनुष्य परमात्मा की संरचना हैं, एक दूसरे के प्रति विरोध बिल्कुल नहीं होना चाहिए। सनातन धर्म तो यह शिक्षा देता है कि सभी लोग सुखी हों। कथा का संचालन आचार्य डॉक्टर बृजेश दीक्षित ने किया। पुराण पूजन वेदाचार्य रामकृपाल शर्मा, शिववरण सिंह, प्रशांत सिंह के द्वारा किया गया एवं आभार व्यक्त किया। वही जनपद अध्यक्ष वरिष्ट भाजपा नेता ठाकुर तरुवर सिंह राजपूत, ठाकुर राजपाल सिंह राजपूत, पूर्व युवा मोर्चा जिला अध्यक्ष पवन सिंह रघुवंशी ने कथा श्रवण कर जगत गुरु से आशीर्वाद प्राप्त किया। समापन के उपरांत विशाल भंडारे का आयोजन किया गया जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु जन उपस्थित थे।

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