यमुना के बढ़ते जलस्तर ने तटवर्ती इलाकों में बढ़ाई बेचैनी, खतरे के निशान से 11 मीटर नीचे है धारा। - Ghatak Reporter

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Thursday, July 13, 2023

यमुना के बढ़ते जलस्तर ने तटवर्ती इलाकों में बढ़ाई बेचैनी, खतरे के निशान से 11 मीटर नीचे है धारा।

यमुना के बढ़ते जलस्तर ने तटवर्ती इलाकों में बढ़ाई बेचैनी, खतरे के निशान से 11 मीटर नीचे है धारा।

  • बांधों से पानी छोड़े जाने को लेकर लोग परेशान।

यमुना के बढ़ते जलस्तर ने तटवर्ती इलाकों में बढ़ाई बेचैनी, खतरे के निशान से 11 मीटर नीचे है धारा।

घातक रिपोर्टर, शिवेंद्र सिंह सेंगर, उत्तर प्रदेश।
औरैया। कोटा राजस्थान के बांध से छोड़े गये पानी व जनपद में हो रही ताबड़तोड़ बारिश और उफान मारती चम्बल की चोट से औरैया से होकर गुजरने वाली नदी एक बार फिर खतरे के निशान की ओर बढ़ती नजर आ रही है। यमुना के लगातार बढ़ते जलस्तर ने जहां तटवर्ती ग्राम निवासियों की धड़कनें तेज कर दी हैं तो वहीं प्रशासन की भी बेचैनी बढ़ा दी है। हालांकि शेरगढ़ घाट यमुना पुल पर आज बुधवार की शाम 4 बजे तक यमुना का जलस्तर 102.15 मीटर दर्ज किया गया। जो कि खतरे के निशान से अभी काफी नीचे बह रही है। लेकिन हर घण्टे आधा सेमी. जलस्तर बढ़ते रहने से लोगों की धुकधुकी तेज हो गई है। बता दें कि जनपद से गुजरने वाली यमुना नदी में अजीतमल के पास इटावा, जालौन व भिण्ड की सीमा पर चम्बल, सिंध, पहूज एवं क्वारी नदियां मिलती हैं। इसके चलते जनपद में यमुना जी का भव्य स्वरूप देखने को मिलता है। पड़ोसी जनपद जालौन को जोड़ने के लिए यहां 1988 में बिलराया पनवाड़ी राजमार्ग पर पुल बनाया गया था।

1998 में यहां पर भीषण बाढ़ आई थी
पुल बनने के बाद यहां 1998 में भारी बाढ़ आई। जिसने तटवर्ती गांवों में भीषण तबाही मचाई और जलस्तर रिकॉ​​​​​​र्ड 119 मीटर से भी ऊपर दर्ज किया गया था। वहीं, सन् 2021 में करीब 2 दशक बाद यहां ऐसा ही तबाही का मंजर फिर देखने को मिला, जब एक बार फिर जलस्तर 118 मीटर के करीब पहुंच गया। जिससे जनपद की यमुना पट्टी पर बसे गांव जुहीखा, बीझलपुर, अस्ता, मई, नौरी, क्योंटरा, मढ़ापुर जैसे कई दर्जन गांव चपेट में आकर पूरी तरह तबाह हो गये थे। बाढ़ का दंश झेल रहे इन गांवों के बाशिंदे अभी पूरी तरह सदमे से उभर भी नहीं पाये थे कि 2022 में ही कोटा बैराज एवं हरियाणा के हथनीकुण्ड बांध से कई लाख क्यूसेक पानी छोड़े जाने से यमुना नदी के जलस्तर ने सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए और नदी का पानी खतरे के निशान 113 मीटर से 7 मीटर ऊपर 119.2 तक पहुंच गया। दर्जनों गांव कई फीट तक पानी में डूब गये। सिर्फ नाव पर बैठकर अंदाजा लगाया जा सकता था कि यहां पर फला गांव हो सकता है।

सीएम योगी ने बाढ़ ग्रसित क्षेत्रों का किया था निरीक्षण
ग्रामीणों एवं मवेशियों के लिए ऊंचे स्थानों पर राहत शिविर बनाये गये। वीभत्स बर्बादी की संवेदनशीलता देखते हुए सूबे के कई मंत्रियों के अलावा खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यहां का हवाई सर्वेक्षण किया था। जिसके बाद उन्होंने बाढ़ग्रस्त गांवों को ऊंचे में बसाने के लिए निर्देश दिए। जिसके फलस्वरूप तत्कालीन जिलाधिकारी प्रकाश चन्द्र श्रीवास्तव ने वन विभाग के अधिकारियों से बातचीत करते हुए यमुना किनारे निचले स्थानों पर पड़ने वाले कई गांवों को बर्बाद होने से बचाने के लिए ऊंचे स्थान पर जगह अधिगृहित कराने की कवायद तेज की। पिछले दो सालों से लगातार बाढ़ का प्रकोप झेल रहे तटवर्ती बेल्ट के दर्जनों गांव अब लगातार बारिश के बाद बांधों से पानी छोड़े जाने को लेकर बेचैन हो उठे। चिंता और शिकन उठी उनके माथे पर साफ देखी जा रही है। वहीं, जिला प्रशासन भी इस ओर नजरें गड़ाये तो हुए है। लेकिन बाढ़ से निपटने के लिए जो संवेदनशीलता दिखनी चाहिए वह फिलहाल नहीं दिखाई दे रही है। जबकि लगातार तेज रफ्तार से बढ़ रहे जलस्तर से यमुना में एक बार फिर तबाही मचाने वाली बाढ़ की संभावना को नकारा नहीं जा सकता।

जर्जर पुल पर लोगों का मजमा खतरे से खाली नहीं
उफान मार रही यमुना में बाढ़ का नजारा देखने लोगों के बड़ी मात्रा में पुल पर पहुंचने और सेल्फी व रील्स बनाने का सिलसिला भी शुरू हो गया है। वैसे तो जब-जब यमुना में बाढ़ आई है तो शहर व क्षेत्र के लोगों का मजमा शेरगढ़ घाट पुल पर देखने को मिला। लेकिन जब से एंड्रायड, सेल्फी तथा रील्स ने डिजिटल दुनिया में कदम रखा, तब से यहां बाढ़ आने पर लोगों की भीड़ में कई गुना इजाफा हुआ। यहां तक कि भीड़ को देखते हुए यहां पानी पूरी, भेल, आइसक्रीम जैसी कई रेहड़ी वाले भी पहुंचने लगे। जिसने यहां मेले जैसा स्वरूप तैयार कर दिया। हालांकि पिछले साल तक पुल पर चलते भारी वाहनों के बीच एक साथ हजारों की भीड़ और झुककर या लटककर फोटो खींचने वाले कृत्य हादसों के प्रबल सबब माने जाते रहे हैं। लेकिन 1988 में बने इस पुल के जीर्ण-शीर्ण होने पर इसे जब इसी वर्ष 2023 के जनवरी माह पर कुछ दिन के लिए रोक दिया गया और आज भी यहां बड़े वाहन प्रतिबंधित हैं। ऐसे में जर्जर पुल पर इस तरह की भीड़ और बाढ़ के तेज पानी का दबाब खतरे से खाली नहीं है। यहां प्रशासन को पहले से ही पुल पर होने वाले खतरों को रोकने के लिए उचित इंतजाम करने होंगे तो वहीं लोगों को भी यह समझना होगा कि स्थितियां पहले जैसी नहीं हैं। जर्जर पुल जब तक मरम्मत कार्य पूरा नहीं हो जाता, तब तक यहां खतरे की संभावना बरकरार है।

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