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Tuesday, October 24, 2023

अंतिम संस्कार के बाद भी नहीं जलता शरीर का ये हिस्सा, जानिए फैक्ट
Human Body Part: अगर शरीर का कोई हिस्सा आग के संपर्क में आ जाए तो बुरी झुलस जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं शरीर में एक ऐसा अंग भी होता है जो मरने में बाद चिता की आग में भी नहीं जलता है। जब किसी इंसान की मौत हो जाती है, तो उसका अंतिम संस्कार संबंधित धार्मिक रिवाजों से किया जाता है। हिंदू मान्यताओं में शरीर को आग में जलाने की परंपरा है ताकि बॉडी का एक-एक हिस्सा पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश में प्रवाहित हो जाए। अंतिम संस्कार के वक्त जब आग लगाई जाती है तो कुछ घंटों में शरीर का एक- एक हिस्सा जलकर राख हो जाता है। ज्यादातर हड्डियां भी राख में बदल जाती हैं। कुछ बच जाती हैं, जिन्हें हम नदियों में विसर्जित करने के लिए चुनकर ले आते हैं।हिंदू धर्म में किसी के मृत्यु के बाद उसे अग्नि देकर उसका अंतिम संस्कार किया जात है। आग में जलने के बाद पूरा शव राख बन जाता है। लेकिन, क्या आप जानते हैं शरीर का एक अंग ऐसा भी होता है, जो आग में भी नहीं जलता। आखिर इसके पीछे वजह क्या है, आइए जानते हैं।
साइंटिस्ट ने कुछ साल पहले एक रिसर्च की
साइंटिस्ट ने कुछ साल पहले एक रिसर्च की, दाह संस्कार के दौरान शरीर में किस तरह के बदलाव होते हैं, उसके बारे में जानने की कोशिश की। पाया कि 670 और 810 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान हो तो शरीर सिर्फ 10 मिनट में पिघलने लगता है। 20 मिनट के बाद ललाट की हड्डी नरम टिश्यू से मुक्त हो जाती है। टेबुला एक्सटर्ना यानी कपाल गुहा की पतली दीवार में दरारें आने लगती हैं। 30 मिनट में पूरी त्वचा जल गई और शरीर के हिस्से नजर आने लगे। दाह संस्कार शुरू होने के 40 मिनट बाद आंतरिक अंग गंभीर रूप से सिकुड़ गए और जाल जैसी या स्पंज जैसी संरचना दिखाई दी। लगभग 50 मिनट बाद हाथ-पैर कुछ हद तक नष्ट हो गए और केवल धड़ बचा जो 1-डेढ़ घंटे के बाद टूटकर अलग हो गया। मानव शरीर को पूरी तरह से जलाने में लगभग 2-3 घंटे का समय लगता है। लेकिन एक हिस्सा फिर नहीं जलता।
यह अंग आग में भी नहीं जलता
मरने के बाद जब किसी के शरीर को जलाया जाता है तो सिर्फ दांत ही बचते हैं। यही वह हिस्सा है, जिसे आप आसानी से पहचान सकते हैं। बाकी का हिस्सा एक तरह से राख हो जाता है। दांतों के न जलने के पीछे साइंस है। दांत कैल्शियम फॉस्फेट से बने होते हैं और इस वजह से उनमें आग नहीं लगती। आग में भी न जलने का कारण इनकी संरचना ही है। चिता की आग में दांत के सबसे नरम ऊत्तक जल जाते हैं, जबकि सबसे कठोर ऊत्तक यानी तामचीनी बच जाते हैं। कुछ हड्डियां भी कम तापमान में नहीं जल पातीं। दरअसल, शरीर की सारी हड्डियों को जलाने के लिए 1292 डिग्री फ़ारेनहाइट के अत्यंत उच्च तापमान की आवश्यकता होती है। इस तापमान पर भी कैल्शियम फॉस्फेट पूरी तरह से राख में नहीं बदलेगा। कुछ लोगों का दवा है कि नाखून भी आग में नहीं जलते। साइंटिफिक तौर पर इसकी पुष्टि नहीं हो पाई है।
कंकाल जलने पर राख में नहीं बदलता
ध्यान देने वाली बात है कि कंकाल जलने पर राख में नहीं बदलता है. यहां तक कि आधुनिक शवदाह गृहों में भी नहीं, वहां भी कंकाल के अवशेषों को शरीर जलने के बाद श्मशान से निकाला जाता है और अवशेषों को श्मशान घाट पर रखते है। कंकाल न जलने के स्थिति में उसे पीसा जाता है।
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