रायसेन/सिलवानी, कथा सुनने से आत्मशांति प्राप्त होती है और भजन में ही जीवन का सार होता है - पंडित कृपालू। - Ghatak Reporter

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Sunday, September 26, 2021

रायसेन/सिलवानी, कथा सुनने से आत्मशांति प्राप्त होती है और भजन में ही जीवन का सार होता है - पंडित कृपालू।

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कथा सुनने से आत्मशांति प्राप्त होती है और भजन में ही जीवन का सार होता है - पंडित कृपालू।

  • कथा के पंचम दिवस भगवान श्री कृष्ण की बाल लीला एवं गोवर्धन पूजन का कराया प्रशंग श्रवण।

रायसेन/सिलवानी, कथा सुनने से आत्मशांति प्राप्त होती है और भजन में ही जीवन का सार होता है - पंडित कृपालू।

घातक रिपोर्टर, जसवंत साहू, रायसेन/सिलवानी।
सिलवानी। सिलवानी अंचल के गांव बिघरा में विवेक एवं विकास रघुवंशी द्वारा स्व. उमेश पटेल की पुण्य स्मृति में आयोजित की जा रही श्रीमद् भागवत कथा सप्ताह के पंचम दिवस कथा व्यास पंडित रामकृपालू शर्मा ने बताया कि भगवत कथा का श्रवण करने से जीवन मे सुख शांति का समावेश होता है। धर्म के प्रति आस्था बढ़ती है। जहां भी जिस समय भी श्रीमद् भागवत कथा सुनने का अवसर प्राप्त हो, इस अवसर को कभी भी नही छोड़ना चाहिए। भजन में ही जीवन का सार होता है। कथा वाचक कृपालुजी ने माता-पिता की सेवा किए जाने का आवश्यक बताते हुए कहा कि जिस ने भी माता-पिता की निस्वार्थ भाव से सेवा कर ली समझ लो उसने सभी तीर्थों की यात्रा करली। माता-पिता के चरणों में ही तीर्थ है। उन्होंने कहा कि चौरासी लाख योनियों मे भटकने के बाद यह मानव तन मिला है। इसका उपयोग सत्य के मार्ग पर चलने में लगा दो। जन्म सफल हो जाएगा।

रायसेन/सिलवानी, कथा सुनने से आत्मशांति प्राप्त होती है और भजन में ही जीवन का सार होता है - पंडित कृपालू।

उन्होंने बताया कि श्रीमद् भागवत कथा श्रवण करने से जीवन में भगवान की भक्ति जाग्रत हो जाती है। संसार में चारो और मोह माया व्याप्त है जिसमें मानव फंस कर अपने अमूल्य जीवन को नष्ट कर रहा है। जबकि मनुष्य का शरीर अनेक जन्मों के पुण्यों के फल स्वरुप प्राप्त हुआ है। जिसका उद्देश्य संसार में परमात्मा के चरणों का आश्रय लेकर सदाचारी रुप से जीवन यापन करके मोक्ष प्राप्त करना चाहिए, लेकिन भटकाव के कारण मानव इस संसार को नित्य मान लेता है। जबकि परमात्मा ही इसके मूल में सत्य रूप में विराजमान है। उनकी भक्ति का प्रादुर्भाव हम सभी को भागवत श्रवण से प्राप्त होता है। श्री कृपालू जी कहते है। हमे हमारे वेदों में, पुराणों में सिखाया गया है की ब्राह्मण, गाय, साधु-संतों का, धर्म का सम्मान करना है। जीव मात्र पर दया करने का स्वभाव हमारा होना चाहिए। मात्र अपने परिवार तक सिमित नहीं होना चाहिए। पृथ्वी पर सम्पूर्ण मानव और समस्त जीव पर दया होनी चाहिए।

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