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Wednesday, September 22, 2021

वाइस प्रिंसिपल ने शुरू की अनोखी पहल, जरूरतमंद बच्चों को बांटे लाखो के फोन, एक छात्र के कहा था - मैम, पापा नहीं रहे, पढ़ाई मुश्क‍िल होगी।

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वाइस प्रिंसिपल ने शुरू की अनोखी पहल, जरूरतमंद बच्चों को बांटे लाखो के फोन, एक छात्र के कहा था - मैम, पापा नहीं रहे, पढ़ाई मुश्क‍िल होगी।

वाइस प्रिंसिपल ने शुरू की अनोखी पहल, जरूरतमंद बच्चों को बांटे लाखो के फोन, एक छात्र के कहा था - मैम, पापा नहीं रहे, पढ़ाई मुश्क‍िल होगी।

दिल्ली। कोरोना महामारी ने गरीब वर्ग से आने वाले बच्चों को पढ़ाई से काफी दूर कर दिया, इनमें खासकर सरकारी स्कूलों के बच्चे थे, जिनके पास संसाधनों की कमी होने से वो ऑनलाइन क्लासेज से वंचित रहे। इस दौर में देशभर में कई ऐसे उदाहरण सामने आए जिनमें श‍िक्षकों ने पार्क, गली-नुक्कड़ों में जाकर ऐसे बच्चों को पढ़ाया। इसी कड़ी में दिल्ली के एक सर्वोदय विद्यालय की वाइस प्रिंसिपल भारती कालरा नजीर बनकर सामने आईं। उन्होंने कोरोना काल में अनूठी पहल चलाकर करीब 27 लाख रुपये के मोबाइल ऐसे ही जरूरतमंद 300 से ज्यादा बच्चों को बांटे, जिससे उन बच्चों के साथ-साथ उनके भाई बहन भी पढ़ाई कर सके।

वाइस प्रिंसिपल भारती कालरा ने बताया कि करीब डेढ़ साल पहले ये वो दौर था जब पूरे देश में लॉकडाउन लग गया था। निर्धन परिवारों से आने वाले मेरे स्कूल के सैकड़ों बच्चे पढाई और टीचर से कट ऑफ हो गए थे। टीचर जब ऑनलाइन क्लास लेते थे तो बताते थे कि 40 बच्चे अगर क्लास में हैं तो ऑनलाइन में 10-12 ही आते हैं, क्योंकि बाकी के पास फोन नहीं हैं। मुझे हमेशा लगता था कि पता नहीं कितने टाइम तक यह चलेगा, मैं उस वक्त काफी अपसेट और टेंशन में थी। कोरोना काल में कई पेरेंट्स की जॉब चली गई थीं, ऐसे में उनसे कहना सही नहीं था कि आप बच्चों को क्लास करने के लिए स्मार्ट फोन दिलवाइए। इसी दौरान एक बच्चा मुझसे मिलने आया, उससे मैंने पूछा कि क्लास क्यों नहीं कर रहे हो तो उसने बताया कि मैम, मैं क्लास अटेंड नहीं कर सकता क्योंकि फोन नहीं है और मेरे फादर की डेथ हो गई है। वो बच्चा 12वीं में था और उसका छोटा भाई 10वीं में था, मैंने उसकी समस्या सुनी तो रात भर सोचती रही, फिर उसको एक फोन लेकर दे दिया। फोन लेकर वो बोला कि मैम, इससे मेरा भाई भी अटेंड कर लेगा।

उसे फोन तो दे दिया लेकिन फिर यही ख्याल आ रहा था कि बाकी जो इतने बच्चे हैं, उनका क्या होगा। तभी मेरे मन में यह आइडिया आया कि अगर ऐसे सभी बच्चों को फोन मिल जाए तो उनकी पढ़ाई आसान हो जाएगी। इसके लिए मैंने अपनी फैमिली से अपने भाई से भतीजी से सबसे बात की। सबने बोला कि हम फोन दे सकते हैं, फिर ऐसे में व्हाट्सएप ग्रुप का मुझे बड़ा फायदा हुआ। रिश्तेदार, फ्रेंडस के ग्रुप, स्कूल फ्रेंड्स के ग्रुप में यह समस्या लिखकर बताई तो सबने फोन डोनेट करने को कहा, हमने किसी से कैश न लेकर 8500 रुपये की एक निश्चित कीमत वाला फोन देने को कहा। इस तरह करते-करते पहले 40 फोन हो गए, वो बांट दिए। फिर डोनर विवेक तनेजा ने मुझे विदेश से 50 फोन भेजे और ऐसे बच्चों को देने को कहा जिनके फादर नहीं है। इसी मुहिम को मेरे भाई ने फेसबुक पर डाला, वहां से 100 फोन मिले, फिर एक एनजीओ ने 60 फोन लड़कियों को दिए, एक ने 80 फोन दिए। सुबह से रात तक इसी में लगी रही और इस तरह 320 फोन बच्चों को दे दिए। हमने सबसे पहले 10वीं, 12वीं फिर 9वीं और 11वीं के बच्चों को फोन दिए।

बता दें कि भारतीय सर्वोदय विद्यालय सेक्टर 8 रोहिणी में वाइस प्रिंसिपल हैं, वो 22 साल से सरकारी स्कूल में टीचिंग जॉब कर रही हैं। वहीं चार साल से सर्वोदय विद्यालय में वाइस प्र‍िंसिपल हैं। अब 321 बच्चों को फोन देने के बाद अब दूसरी मुहिम चला रही हैं, इस मुहिम के तहत वो उन बच्चों की आर्थ‍िक सहायता कर रही हैं, जिनके बच्चों के फादर की डेथ हुई है। वो बताती हैं कि हमारे स्कूल में ऐसे 25 बच्चे हैं, ये 10 पिताओं के 25 बच्चे हैं, ऐसी हर फैमिली को वो पांच हजार रुपये की मदद कर रही हैं जिससे उनकी पढ़ाई हो सके।

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