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Wednesday, September 22, 2021

रायसेन/सिलवानी, श्रीमद्भागवत कथा सुनने मात्र से ही सारे पाप कट जाते हैं - वेदाचार्य रामकृपालू।

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श्रीमद्भागवत कथा सुनने मात्र से ही सारे पाप कट जाते हैं - वेदाचार्य रामकृपालू।

रायसेन/सिलवानी, श्रीमद्भागवत कथा सुनने मात्र से ही सारे पाप कट जाते हैं - वेदाचार्य रामकृपालू।

घातक रिपोर्टर, जसवंत साहू, रायसेन/सिलवानी।
सिलवानी। सिलवानी तहसील के ग्राम बिघरा में स्व. पटेल उमेश सिंह रघुवंशी की पुण्य स्मृति में सप्तदिवासिय श्रीमद भागवत कथा का आयोजन पटेल कुंडल सिंह रघुवंशी, विवेक रघुवंशी, विकास रघुवंशी के द्वारा आयोजित की जा रही है। कथा व्यास पंडित रामकृपालू शर्मा ने श्रद्धालुओं को कथा श्रवण कराते हुए कहा कि जन्म-जन्मांतर एवं युग-युगांतर में जब पुण्य का उदय होता है तब ऐसे अनुष्ठान शुरू होता है। श्रीमद्भागवत कथा एक अमर कथा है इसे सुनने से पापी से पापी व्यक्ति भी पाप से मुक्त हो जाता है। कृपालू जी ने प्रथम दिवस पर श्रीमद्भागवत कथा का महात्म्य बताते हुए कहा कि वेदों का सार युगों-युगों से मानव जाति तक पहुंचता रहा है। 'भागवत महापुराण' यह उसी सनातन ज्ञान की पयस्विनी है जो वेदों से प्रवाहित होती चली आ रही है। इसीलिए भागवत महापुराण को वेदों का सार कहा गया है। उन्होंने श्रीमद् भागवत महापुराण की व्याख्या करते हुए बताया कि श्रीमद् भागवत अर्थात जो श्री से युक्त है, श्री अर्थात चैतन्य, सौंदर्य, ऐश्वर्या, भागवत: प्रोक्तम् इति भागवत भाव कि वो वाणी, जो कथा जो हमारे जड़वत जीवन में चैतन्यता का संचार करती है। जो हमारे जीवन को सुंदर बनाती है वो श्रीमद्भागवत कथा जो सिर्फ मृत्युलोक में ही संभव है और साथ ही यह एक ऐसी अमृत कथा है जो देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। इसलिए परीक्षित ने स्वर्गा अमृत के बजाए कथामृत की मांग की। किस स्वर्गामृत का पान करने से पुन्यों का क्षय होता है पापों का नहीं। किंतु कथा अमृत का पान करने से संपूर्ण पापों का नाश होता है। कथा के दौरान उन्होंने वृंदावन का अर्थ बताते हुए कहा कि वृंदावन इंसान का मन है। कभी-कभी इंसान के मन में भक्ति जागृत होती है। परंतु वह जागृति स्थाई नहीं होती। इसका कारण यह है कि हम ईश्वर की भक्ति तो करते हैं पर हमारे अंदर वैराग्य व प्रेम नहीं होता है। इसलिए वृंदावन में जाकर भक्ति देवी तो तरुणी हो गई पर उसके पुत्र ज्ञान और वैराग्य अचेत और निर्बल पड़े रहते हैं। इसमें जीवन्तता और चैतन्यता का संचार करने हेतु नारद जी ने भागवत कथा का ही अनुष्ठान किया। अगर भक्ति चाहिए तो भक्ति मिलेगी मुक्ति चाहिए तो मुक्ति मिलेगी। भागवत कथा महातम्य में तुंगभद्रा नदी के तट पर निवास करने वाले आत्मदेव का वर्णन आता है। कल्याण करने वाली, 84 लाख योनियों से उत्थान दिलाने वाली यह मानव देह कल्याणकारी है जो हमें ईश्वर से मिलाती है। यह मिलन ही उत्थान है। आत्मदेव जीवात्मा का प्रतीक है, जिसका लक्ष्य मोह, आसक्ती के बंधनों को तोड़, उस परम तत्व से मिलना है। यूं तो ऐसी कई गाथाएं, कथाएं हम अनेकों व्रत व त्योहारों पर भी श्रवण करते हैं, लेकिन कथा का श्रवण करने या पढ़ने मात्र से कल्याण नहीं होता। अर्थात जब तक इनसे प्राप्त होने वाली शिक्षा को हम अपने जीवन में चरितार्थ नहीं कर लेते, तब तक कल्याण संभव नहीं।

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