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Saturday, April 23, 2022
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नरसिंहपुर/तेंदूखेड़ा, पंचायती राज दिवस पर विशेष :- कहीं पंचायतों की दिशा बदल गई तो कहीं पंचायतें दिशा हीन हो गई।
नरसिंहपुर/तेंदूखेड़ा, पंचायती राज दिवस पर विशेष :- कहीं पंचायतों की दिशा बदल गई तो कहीं पंचायतें दिशा हीन हो गई।
घातक रिपोर्टर, धर्मेन्द्र साहू, नरसिंहपुर/तेंदूखेड़ा।
तेंदूखेड़ा। आज पंचायती राज दिवस है। पंचायती राज व्यवस्था के पीछे शासन की जो मंशा थी उसके पीछे एक मात्र कारण केवल ग्राम पंचायत के माध्यम से ही ग्राम वासी निर्णय लेकर ग्राम के लोगों के हितों और समग्र विकास की दिशा में मिलकर काम करें। इसलिए जो त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था के तहत अलग कानून बनाकर अधिकार सोंपे गये थे। लेकिन कुछ ग्राम पंचायतों ने इस व्यवस्था का सही मायने में पालन करते हुए गांवों की तस्वीरें ही नहीं बदली बल्कि वहां के लोगों के रहन सहन के तौर तरीके ही बदल डाले है। इनमें कुछ ऐसी भी पंचायतें हैं जिन्होंने जनता के हितों को दरकिनार कर केवल स्वयं का विकास किया है। महिला सरपंचों के पतियों ने तो केवल सरपंच पत्नि को हस्ताक्षर तक सीमित रखा वाकी सरपंच महिलाओं को यह भी जानकारी नहीं रही कि उनके गांव में क्या चल रहा है। सरपंचों ने सचिव और रोजगार सहायकों के माध्यम से मिलकर कुछ निर्माण कार्यों की राशि केवल कागजी खानापूर्ति के लिए खर्च की गई उनमें फर्जी बिल लगाकर बंदर बांट ही ज्यादातर सामने देखने को मिल रही है। चांवरपाठा विकास खंड में लगभग 86 ग्राम पंचायतें शामिल हैं। जिनमें नर्मदा उत्तराखंड में 44 और 42 नर्मदा दक्षिणाखंड में शामिल हैं। इन पंचायतों के माध्यम से मनरेगा, 15 वें वित आयोग, अनुदान प्राप्त, सांसद विधायक निधियां, तथा परर्फामेंष की राषि से नाली सी सी सड़क चबूतरा आवास खेल ग्राउंड षमषान तालाब कूप निर्माण चेक डेम स्टाप डेम निर्माण सहित प्रशासन द्वारा चलाई जा रही योजनाओं के क्रियांवयन में अमलीजामा पहनाने की दिषा में महत्वपूर्ण भूमिका ग्राम सचिव और रोजगार सहायकों की रहती है। लेकिन अक्सर कर देखने में मिलता है और विभन्न प्रकार के जनसमस्या निवारण षिवरों और जनप्रतिनिधियों को ग्रामीण क्षेत्रों में पंहुचने के समय सिकवा षिकायतों के माध्यम से अधिकांष वस्तु स्थिति सामने देखने को मिलती है।
तेंदूखेड़ा विधानसभा क्षेत्र का बूथ क्रमांक एक जिसे पहले अंडमान निकोबार द्वीपसमूह के नाम से लोग जानते थे पूर्णतः आदिवासी और जंगल क्षेत्र में निवासरत ग्रामपंचायत मर्रावन जिसके अंतर्गत इमलिया खकरेड़ी ब्रह्मनी महुआखेड़ा छोटा बड़ा यहां पर पहले नाही सड़क बिजली पानी षिक्षा और स्वास्थ्य की कोई व्यवस्था नहीं थी। बीमार व्यक्ति को चारपाई पर लिटाकर तेंदूखेड़ा लाना पड़ता था। षिक्षा के लिये बच्चे 8वीं तक पढ़कर घर बैठकर मेहनत मजदूरी हरवाई करने लगते थे। मूलभूत उन सभी सुविधाओं की नगण्यता बनी हुई थी पंचायती राज व्यवस्था और विधायक संजय शर्मा ने इस ग्राम पंचायत को गोद लेकर ना केवल यहां की स्थिति बदल डाली है। यहां के बच्चे अपने ही गांव में हाईस्कूल तक की षिक्षा ग्रहण करने केे साथ उन सभी सुविधाओं का उपभोग कर रहे है और विकासखंड के सबसे बेहतरीन व्यवस्थित ग्राम पंचायत भवन में सोफे पर बैठकर टीवी चैनलों के माध्यम से आध्यात्मिक ज्ञान के साथ देष में घटित हो रहीं घटनाओं के बारे में जानकारी भी ले रहे है। सड़क व्यवस्था के माध्यम से तेंदूखेड़ा आना जाना कर विकास की धारा से जुड़ चुके है।
नर्मदा उत्तराखंड के अंतर्गत आदिवासी ग्राम पंचायत की जहां सराहनीय व्यवस्थायें देखने को मिलती है। वहीं दर्जनों ऐसी ग्राम पंचायते है जो शासन की योजनाओं के क्रियंांवन को धता बताकर केवल कागजी खाना पूर्ति करती हुई नजर आती है। इनमे पुण्य सलीला मां नर्मदा के पपावन घाट पर वसे ग्राम विल्थारी जहां ना केवल मुख्य सड़क मार्गों पर गंदगी बजबजाती है। वहीं ग्रामीणों की सुविधाओं के लिये बनाई गई पानी की टंकी प्रारंभ न होने के कारण केवल शोभा की सुपाड़ी बन कर रह गई है। पात्र हितग्राहियों को योजनाओ का लाभ ना मिलपाने के साथ ग्राम पंचायत के निर्वाचित ग्रामपंचायत सदस्यों द्वारा अविष्वास प्रस्ताव लाने पारित हो जाने के बाद जनपद स्तर के जनप्रतिनिधियों के हस्तक्षेप से पुनः सरपंच को अधिकार सौंप देने महिला सरपंच को अधिकार ग्रामपंचायत में क्या चल रहा है। इसकी जानकारी ना होने के साथ साथ महिला सरपंच का पति ग्राम कोटवार ग्राम पंचायत का संचालन मनमाने तरीके से कर रहा है। इनमें कुछ ऐसी ग्रामपंचायते भी है। जहां सरपंचों द्वारा निर्माण कार्यो की राषि डकार ली है। और निर्माण कार्य अभी तक पूर्ण नहीं हो सके है। ना तो खेल ग्राउंड देखने को मिलता है। और ना कहीं तालाबों का निर्माण हुआ है। शमषान घाटों के टीन उड़ जाने का हवाला देकर राषि निकाल ली गई है। नालियों का निर्माण ना होने से सार्वजनिक जल स्रोतो के समीप गंदगी बजबजारही है। लोग वही दूषित पानी पीने को मजबूी बने हुये है। बीच सड़कों पर भूरों के ढेर प्रधानमंत्री के स्वच्छता अभियान को बट्टा लगा रहे है।
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