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Saturday, August 20, 2022

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जिस दोस्त के भरोसे छोड़ीं मां और दादी की जिम्मेदारी, उसी ने कर्ज उतारने के लिए कर डाली दोनों की हत्या।
जिस दोस्त के भरोसे छोड़ीं मां और दादी की जिम्मेदारी, उसी ने कर्ज उतारने के लिए कर डाली दोनों की हत्या।
दिल्ली। जब कोई अपराधी संगीन अपराध करता है, तो वो पहले ही खुद को बचाने के रास्ते भी तलाश कर लेता है। वो बचने की हर मुमकिन कोशिश करता है, लेकिन अपराधी चाहे कितना भी शातिर क्यों ना हो जुर्म करते वक्त वो कोई ना कोई सुराग जरूर छोड़ देता है, जो उसे कानून के शिकंजे में पहुंचा देता है। उसकी एक मामूली सी गलती उसे सलाखों के पीछे पहुंचा देती है। ऐसा ही कुछ हुआ दिल्ली के डबल मर्डर केस में, जहां कातिल ने पहले बड़ी खामोशी से दो कत्ल किए और फिर लूटपाट को अंजाम दिया। लेकिन उसकी एक गलती ने उसे उसके अंजाम तक पहुंचा दिया। पुलिस ने जिस तरीके से डबल मर्डर की ये पहेली सुलझाई, वो भी कम दिलचस्प नहीं है।
दिल्ली के वेलकम इलाके के रहनेवाले दो भाई जब चार दिन की छुट्टी मना कर मंगलवार यानी 16 अगस्त की सुबह अपने घर लौटे, तो इस दुनिया का सबसे खौफनाक मंजर उनका इंतजार कर रहा था। चूंकि एक ये एक एक्सटेंडेड वीकेंड था, शनिवार और रविवार के साथ सोमवार को पंद्रह अगस्त की भी छुट्टियां पड़ रही थी, दोनों भाइयों ने पहले ही घूमने-फिरने का प्लान बना लिया था। लेकिन 20 साल के शशांक और 18 साल के सार्थक जब छुट्टियां मना कर घर लौटे तो उनकी दुनिया ही उजड़ चुकी थी। तभी सुबह के कोई चार बज रहे होंगे, दोनों भाइयों ने पहले बेल बजाई, दरवाजे पर कई बार दस्तक भी दी। लेकिन ना तो किसी ने घर में दरवाजा खोला और ना ही अंदर से कोई आवाज ही आई। ऐसे में दोनों भाइयों को लगा कि शायद घर में उनकी मां और बुजुर्ग दादी गहरी नींद सो रही हैं। दोनों ने अपने पास मौजूद चाबी से ही घर का दरवाजा खोल दिया। लेकिन के अंदर का मंजर देख कर दोनों कांप उठे। उनके रौंगटे खडे हो गए और दोनों चिल्लाते हुए बाहर निकल आए। घर में मां और दादी दोनों का ही कत्ल हो चुका था। मां की खून से सनी लाश ग्राउंड फ्लोर पर बने उनके बेडरूम में पड़ी थी, जबकि दादी की लाश ऊपर उनके अपने बेडरूम में। घर का सारा सामान बिखरा हुआ और बेतरतीब पड़ा था। रुपये-पैसे और गहने जैसी तकरीबन सारी कीमती चीजें भी गायब थीं, जिसे देख कर साफ था कि दोनों का कत्ल लूटपाट के इरादे से किया गया है।
सुबह सवेरे इलाके में डबल मर्डर की खबर से दिल्ली पुलिस के भी हाथ पांव फूल गए। आनन-फानन में वेलकम थाने की पुलिस मौका-ए-वारदात पर पहुंची और छानबीन शुरू की गई। दोनों नौजवान भाइयों यानी शशांक और सार्थक ने पुलिस को बताया कि वो 12 अगस्त को अपने दोस्तों के साथ छुट्टियां मनाने हरिद्वार और ऋषिकेश की तरफ गए थे। दोनों भाइयों का पूजा सामग्री का कारोबार है और उनकी दिल्ली के चांदनी चौक में दुकान भी है। जबकि वो सालों से वेलकम इलाके के इसी सुभाष पार्क की गली नंबर 12 में रहते हैं। लेकिन जिस तरह से उनकी मां और दादी की हत्या हुई है, उस पर उनके लिए अब भी यकीन करना मुश्किल हो रहा है। अव्वल तो घर का बिखरा सामान भी इस दोहरे कत्ल के पीछे लूटपाट का इशारा दे रहा था, ऊपर से दोनों भाई इस वारदात के पीछे किसी पर शक भी नहीं जता रहे थे। ऐसे में पुलिस के लिए इस मामले की तह तक जाना एक चुनौती थी। पूछताछ में दोनों भाइयों ने अपने पड़ोस में रहनेवाले एक दूसरे नौजवान हर्षित का नाम जरूर लिया और बताया कि हर्षित उनका पुराना दोस्त है और छुट्टी पर जाने से पहले उन्होंने हर्षित को ना सिर्फ इसके बारे में बताया था, बल्कि उनकी मां और दादी के साथ-साथ चांदनी चौक में मौजूद उनकी दुकान का भी ख्याल रखने की गुजारिश की थी। जाहिर है ऐसे में पुलिस के लिए हर्षित से पूछताछ करना भी लाजिमी था।
अब पुलिस ने हर्षित से सवाल जवाब शुरू किया, लेकिन उसने पूरी मासूमियत से जवाब दिया कि उसे ना तो इस अपने दोस्तों के घर हुई लूटपाट का पता है और ना ही उनकी मां और बुजुर्ग दादी के कत्ल के बारे में कोई जानकारी है। हां, उसने इतना जरूर कहा कि शशांक और सार्थक के कहने के पर उसने दोनों भाइयों के जाने के बाद एक दो बार उनके घर जाकर उनकी मां और दादी से मुलाकात जरूर की थी, लेकिन ये सब कब हुआ, कैसे हुआ, किसने किया, इसके बारे में उसे कोई खबर नहीं है। अब पुलिस ने दोनों महिलाओं की रूटीन के बारे में पता करना शुरू किया। पुलिस को पता चला कि शशांक और सार्थक की मां डॉली राय रोज अपने कुते को घुमाने घर से बाहर निकलती थीं। लेकिन 13 अगस्त के बाद उन्हें किसी ने घर से बाहर निकलते नहीं देखा था। बल्कि पड़ोसियों ने पुलिस को बताया कि डॉली राय को 13 अगस्त की शाम को शशांक और सार्थक के दोस्त हर्षित के साथ देखा गया था। पुलिस ने दादी विमला देवी के बारे में भी जानकारी जुटाई, पता चला कि दादी चलने फिरने से लाचार थीं और इसीलिए बार-बार अपनी बहू को फोन कर बुलाती थीं। यानी एक दिन में कम से कम वो 15 से 20 बार अपनी बहू को कॉल जरूर करती थी। लेकिन इतेफाक से 13 अगस्त की रात 9 बजे के बाद दादी ने भी किसी को कॉल नहीं किया था।
अब चूंकि पड़ोसियों ने आखिरी बार हर्षित को ही डॉली राय के साथ देखने के बात कही थी, तो पुलिस ने हर्षित को बुला कर नए सिरे से पूछताछ की, लेकिन उसने सीधा सपाट जवाब दे दिया कि हां वो 13 को शशांक और सार्थक के घर गया था और उनकी मां यानी डॉली राय को अपने साथ मंदिर भी लेकर गया था। पुलिस ने इस तथ्य को भी अपने तौर पर वेरीफाई किया और हर्षित की ये बात सही पाई गई। लेकिन फिर हर्षित के पास कई दूसरे सवालों के जवाब नहीं थे। मसलन 13 अगस्त की रात के बाद से हर्षित ने एक बार भी अपनी दोस्त की मां और बुजुर्ग दादी की खोज खबर क्यों नहीं ली, जबकि 13 अगस्त की रात से उनका घर से बाहर ना निकलना और मोबाइल फोन से कोई भी कॉल ना होना इस बात की तरफ इशारा कर रहा था कि शायद कातिल 13 अगस्त की रात को ही दोनों का कत्ल कर चुका था। ऐसे में सवाल ये था कि 14 और 15 अगस्त को भी हर्षित ने एक बार भी दोनों की खोज-खबर क्यों नहीं ली।
सवाल शशांक और सार्थक से भी पूछा गया कि आखिर दोनों ने इतने दिनों तक अपनी मां और दादी से बात क्यों नहीं की? लेकिन दोनों भाइयों ने जो जवाब दिया, उसने इस मामले में पुलिस को पहला क्लू दे दिया। दोनों ने कहा कि चूंकि वो अपने दोस्त हर्षित को ही मां और दादी का ख्याल रखने की बात कह कर गए थे, उन्होंने हर्षित को फोन किया था और हर्षित ने हर बार उसकी मां और दादी के खुशहाल होने की बात कह कर उन्हें आराम से छुट्टी मना कर लौटने की बात कही। जबकि इधर हर्षित बता रहा था कि उसने 13 अगस्त के बाद शशांक और सार्थक की मां और दादी की कोई खोज खबर नहीं ली थी। पुलिस को यकीनन इस मामले में टेकनीकल इनवेस्टिगेशन से मदद मिल सकती थी, लेकिन दिक्कत ये थी कि शशांक और सार्थक के घर के पास लगा सीसीटीवी कैमरा भी खराब था। अब यहां दो बातें गौर करनेवाली थीं, क्या कातिल को भी ये पता था कि यहां का सीसीटीवी कैमरा खराब है? और दूसरा ये कि क्या कातिल को इस बात की पहले से खबर थी कि घर के दोनों बेटे कहीं बाहर गए हुए हैं और दो महिलाएं अकेली घर में रह रही हैं? क्योंकि बेटों के घर से दूर जाने के बाद दोनों महिलाओं का कत्ल किए जाने से पुलिस को इस बात भी अंदेशा हो रहा था कि कातिल इस परिवार का कोई जानकार तो नहीं है। ऊपर से जिस तीसरी बात ने पुलिस के शक को और मजबूती दी, वो थी कातिल की घर में फेंडली एंट्री।
भरी आबादी के बीच दो महिलाओं का कत्ल हो गया, लेकिन किसी ने एक चीख तक नहीं सुनी। ना तो कातिलों ने कोई जोर जबरदस्ती से घर का दरवाजा खुलवाया। यहां तक कि उनके घर के पालतू कुते ने भी कोई शोर नहीं किया। यानी कातिल जो भी थाा ना सिर्फ इस परिवार का जानकार था, उसे घर के बेटों के बाहर जाने की खबर थी, बल्कि इस परिवार का बेहद करीबी भी था। अब पुलिस के शक की सुई दोनों भाइयों के दोस्त हर्षित पर जाकर टिक गई। लेकिन पुलिस ने उस पर हाथ डालने से पहले थोड़ी और तफ्तीश करने का फैसला किया। बेशक कत्ल वाली जगह गली का सीसीटीवी कैमरा खराब हो, लेकिन हर्षित के घर के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरे सही थे। अब पुलिस ने जब इन कैमरों की फुटेज देखी तो सच्चाई सामने आ गई। 13 अगस्त की रात को हर्षित अपने साथ पैकेट में संदिग्ध तरीके से कुछ लेकर आता हुआ दिखाई दे रहा था। इस सारे सुरागों के मद्देनजर जब पुलिस ने उससे सख्ती शुरू की, तो उसने जो कहानी सुनाई, उसे सुन कर वर्दीवाले भी सन्न रह गए।
हर्षिद दोस्त नहीं, बल्कि दोस्ती की खाल में छुपा, वो गद्दार दुश्मन था, जिसने खुद अपने हाथों से अपने दोस्त शशांक और सार्थक की मां डॉली राय और विमला देवी का का कत्ल किया था और सीसीटीवी कैमरे में कैद हुई हर्षित की वो तस्वीरें कत्ल के ठीक बाद की थी, जब वो अपने दोस्तों की मां और दादी का कत्ल करने के बाद उनके घर से रुपये और जेवर लूट कर अपने घर लौटा था। लेकिन क्या सिर्फ लालच ने ही हर्षित के हाथों दो-दो कत्ल करवा दिए या फिर इन कत्ल के पीछे कोई और भी कहानी थी। जब पुलिस ने तफ्तीश आगे बढ़ाई, तो कत्ल का वो सच भी सामने आ गया, जिस पर यकीन करना मुश्किल था। क्योंकि कहानी इससे कहीं आगे की थी, हर्षित और शशांक की दोस्ती करीब दस साल पुरानी थी। हर्षित तकरीबन हर दूसरे दिन शशांक के घर आता-जाता रहता था। यही वजह है कि शशांक और सार्थक भी हर्षित पर हद से ज्यादा भरोसा करते थे। यहां तक कि शशांक के घर का कुता भी हर्षित को एक फ्रेंड के तौर पर पहचानता था। हर्षित ने शशांक से 5 लाख रुपये ब्याज पर भी ले रखे थे। हालांकि अब हर्षित ये रुपये नहीं लौटा पा रहा था, वैसे ये एक अलग बात थी।
चूंकि हर्षित की दोस्ती दोनों भाइयों से बेहद गहरी थी, दोनों भाइयों ने ना सिर्फ अपने बाहर घूमने जाने की प्लानिंग पहले ही हर्षित को बता दी थी, बल्कि मां और दादी का ख्याल रखने को भी कहा था। लेकिन दोस्ती की खाल में छुपे दुश्मन हर्षित ने उसी रोज शशांक और सार्थक की मां और दादी का कत्ल कर उनके घर में लूटपाट की प्लानिंग बना ली थी, जिस रोज उसे दोनों ने बाहर घूमने जाने की बात कही थी। हर्षित ने इसके लिए पहले से ही एक बड़ा सा चाकू खरीद रखा था। फिर जैसे ही 12 अगस्त को दोनों भाई बाहर गए, हर्षित ने अगले ही दिन मौका देख कर दोनों महिलाओं का कत्ल कर घर में लूटपाट कर डाली। हर्षित ने पहले तकिए से गला घोंट कर अपने दोस्तों की मां डॉली राय को मारा फिर उन्हें चाकू से गोदा और फिर ऊपर के कमरे में जाकर दादी के साथ भी ऐसा ही किया। हालांकि दादी ने बचने की कोशिश की और इसी सिलसिले में उनके नाखून के निशान हर्षित के गले पर छूट गए। लूटपाट के बाद हर्षित ने चप्पा-चप्पा छाना, जेवर रुपये चुराए और फिर वहां से निकल गया, जाते-जाते दरवाजा बंद कर गया। जाते-जाते वो छत का दरवाजा खोल कर गया, ताकि पुलिस को लगे कि कातिल छत के रास्ते से आए और वहीं से फरार हो गए।
हालांकि अगले दिन यानी 14 अगस्त को जब उसे याद आया कि छत में एक सीसीटीवी कैमरा लगा है, तो फिर वो उस कैमरे को उखाड़ कर ले गया। इसके बाद वो लगातार मां और दादी की सलामती को लेकर शशांक और सार्थक को झूठ बोलता रहा। उसका इरादा था कि वो लूटे गए रुपयों और जेवर से ही खुद पर चढ़ा पांच लाख रुपये का कर्ज भी उतार दे और पकड़े जाने से भी बच जाए। लेकिन उसकी ये साजिश कामयाब नहीं हो सकी। उसने दो-दो बेगुनाह महिलाओं का कत्ल कर दोस्ती का तो कत्ल कर दिया, लेकिन सबूतों ने आखिरकार उसकी चुगली कर दी और वो शातिर कातिल सलाकों के पीछे पहुंच गया।
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माता रानी की कृपा एवं मात्र पित्र आशीर्वाद
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