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Saturday, April 15, 2023

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रायसेन, असुरक्षित तरीके से डंप हो रहा मेडिकल वेस्ट, 90 फीसदी क्लीनिक प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में पंजीकृत नहीं।
रायसेन, असुरक्षित तरीके से डंप हो रहा मेडिकल वेस्ट, 90 फीसदी क्लीनिक प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में पंजीकृत नहीं।
घातक रिपोर्टर, राकेश दुबे, रायसेन।
रायसेन। जिले में स्वास्थ्य संस्थाओं से निकलने वाला कचरा असुरक्षित तरीके से डंप हो रहा है। करीब 90 फीसदी क्लीनिक और 50 फीसदी पैथोलॉजी ने उस कंपनी की सदस्यता ही नहीं ली है। जिसे मेडिकल वेस्ट (कचरे) प्रबंधन का ठेका दिया गया है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन का आरोप है कि उक्त कंपनी द्वारा मनमाना शुल्क वसूला जा रहा है। शुल्क की कोई रसीद भी नहीं दी जाती।
स्वास्थ्य विभाग और प्रदूषण नियंत्रण विभाग के पास ऐसा कोई ब्यौरा नहीं है।जिससे पता चले कि कंपनी कितना शुल्क ले सकती है। दूसरी ओर गैर पंजीकृत संस्थाओं पर हमेशा कार्रवाई की तलवार लटकी रहती है। इससे ज्यादा खतरनाक बात यह है कि उक्त संस्थाओं से निकलने वाला मेडिकल वेस्ट असुरक्षित तरीके से डंप कर दिया जाता है। जो जनस्वास्थ्य के लिए बहुत ज्यादा खतरनाक है।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने बताया कि जेके वेस्ट मैनेजमेंट कंपनी द्वारा शुल्क को लेकर मनमानी की जा रही है। अगर किसी क्लीनिक को सदस्यता चाहिए तो उससे 1500 रुपए प्रतिमाह की दर से 3 साल के 54000 रुपए वसूले जाते हैं। इसके अलावा पंजीयन शुल्क एक हजार और सदस्यता शुल्क के 20 हजार रुपए अलग लगते हैं।
अनियमितता यह है कि कंपनी जो शुल्क लेती है, उसकी कोई रसीद नहीं दी जाती। कंपनी कितना शुल्क ले सकती है - यह ब्यौरा न तो जिला स्वास्थ्य विभाग के पास है, न प्रदूषण बोर्ड के पास। इस मुद्दे पर एसो. सहित क्लीनिक संचालकों ने कलेक्टर अरविंद दुबे से लेकर स्वास्थ्य आयुक्त तक शिकायत की है। प्रभारी मंत्री डॉ अरविंद भदौरिया को भी ज्ञापन दिया। लेकिन आज कोई कार्रवाई नहीं हुई।
जो डॉक्टर या क्लीनिक संचालक कंपनी की मनमानी के बावजूद इसकी सदस्यता ले चुके हैं। उनके यहां से मेडिकल वेस्ट उठवाया नहीं जा रहा है। इसी को लेकर जेके मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम के खिलाफ एक क्लीनिक संचालक ने उपभोक्ता फोरम में परिवाद दाखिल किया है। उनके वकील डॉ. पुष्पराग ने बताया कि डॉ. शर्मा ने इस कंपनी की सदस्यता ली थी। इसके बावजूद फरवरी 2020 से फरवरी 2021 के बीच कंपनी की ओर से मेडिकल वेस्ट लेने के लिए कोई गाड़ी नहीं भेजी गई। कंपनी को कई बार इसकी सूचना दी गई लेकिन स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया। डॉक्टर ने सेवा में कमी का दावा लगाते हुए शुल्क के रूप में ली गई 54 हजार रुपए की राशि मांगी है। साथ ही 40 हजार रुपए क्षतिपूर्ति और वाद व्यय के 40 हजार रुपए की भी मांग की गई है। इस मामले में सीएमएचओ डॉ दिनेश खत्री का कहना है कि अगर कोई प्रायवेट हॉस्पिटल संचालक द्वारा गलत तरीके से खुले में मेडिकल बेस्ट निष्पादित करते पकड़ा जाता है तो उनके खिलाफ नियमानुसार कार्रवाई सुनिश्चित की जाती है।
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