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Tuesday, January 30, 2024

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रायसेन/बरेली, नित्य शास्त्र स्वाध्याय से घर में ही मोक्ष प्राप्त हो सकता है - ब्रह्मचारी महाराज
रायसेन/बरेली, नित्य शास्त्र स्वाध्याय से घर में ही मोक्ष प्राप्त हो सकता है - ब्रह्मचारी महाराज
घातक रिपोर्टर, राकेश दुबे, रायसेन/बरेली
बरेली। मंगलवार को मानस मंडल सम्मेलन समिति द्वारा आयोजित श्री गरुण महापुराण कथा के पंचम दिवस की कथा में ब्रह्मचारी महाराज ने धर्म सार व नीति सार विस्तार से व्याख्या की। कथा का श्रवण लाभ उठाने के लिए पूर्व विधायक देवेंद्र सिंह पटेल और भगवान सिंह राजपूत भी कथा पंडाल में उपस्थिति रहे। ब्रह्मचारी महाराज ने बताया कि श्री गरुण महापुराण में वर्णित धर्मशास्त्र में बताया गया है की धर्माचरण करने से गृहस्थ को घर में ही मोक्ष की प्राप्त हो सकता है। इसके के लिए आवश्यक है की गृहस्थ उदारता से धर्म मे दान करें, नित्य शस्त्रों का स्वाध्याय करे, अतिथियों की पूजा करे। केवल और केवल अपनी पत्नी से ही प्रेम करे।
धरमपी परंपरा से जुड़ना आवश्य
ब्रह्मचारी महाराज ने बताया की गोविंदपदाचार्य के शिष्य आदि शंकराचार्य ने चार मठों की स्थापना कर वेद परंपरा शुरू की। चारों मतों से प्रारंभ धर्म परंपरा किसी न किसी परंपरा से जुड़ना चाहिए। बिना धर्म परंपरा से जुड़े ज्ञान जाग्रत नहीं होता। परंपरा से जुड़े बिना सिद्ध साधु संतों की कृपा प्राप्त नहीं होती। जहाँ नदी, ज्योतिषि, राजा सहित पाँच लोग नहीं रहते वहाँ नहीं रहना चाहिए। महाराज जी ने बताया संपत्ति भोग से नहीं भाग्य से कम होती है। जब संसार मे धर्म न रहे, पृथ्वी बांझ हो जाए अर्थात वृक्षों ने फल देना बंद कर दिया हो। ब्राह्मण विषयों में लग गया। ऐसा समय आने से पहले दुनिया ही छोड़ने वाले मनुष्य धन्य है। दूसरे की स्त्री, दूसरे का अन्न, दूसरे का धन, दूसरे की शैया का उपयोग नहीँ करना चाहिए। यदि ऐसा इंद्र भी करेगा तो वह कंगाल हो जाएगा इसलिए साधु संत अपनी आसन साथ में रखते हैं।
अन्न परखने के बाद सेवन करें
ब्रह्मचारी महाराज नीति सार और धर्म सार से बताते है कि अन्न ग्रहण करने से पहले परख लें। ब्राह्मण का अन्न अमृत होता है। क्षत्रिय का अन्न दूध, वैश्य का अन्न अन्न और शूद्र का अन्न रूधिर के समान है। कथा व्यास ने बताया प्राणी के जन्म से पहले उसका प्रारब्ध लिखा जाता है। जन्म से पहले ही भाग्य में भोग के साधन तय हो जाते हैं। इसलिए भोग की चिंता छोड़ कर हरि भजन कर भवसागर से पर हो जाना चाहिए।
जानने और मानने में अंतर न रहे
सभी जानते हैं की धन संपत्ति और वैभव का अंतिम परिणाम पतन है। किसी भी प्राणी या पदार्थ से संयोग हुआ है उसका वियोग तय है। जीवन का सत्य है मरण तय है। यह सब जानते हुए मनुष्य इसको मानते नहीं है। जब जानने और मानने का अंतर समाप्त हो जाएगा मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर लेगा। अभी मनुष्य आत्मा की जगह अनात्मा की और दौड़ने में लगे है। जीवन एक स्वप्न है। स्वप्न में राजा से रंक और रंक से राजा हो जाता और जगने के बाद सब समाप्त हो जाता है।
तीन व्रत अवश्य करें
मनुष्य को शिवरात्रि, रामनवमी और श्री कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत अवश्य करना चाहिए। महाशिवरात्रि का 24 घण्टे का निर्जला व्रतकर, तीन बार स्नान, चारो पहर का अभिषेक करें एक पल भी निद्रा न लें।
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