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Thursday, January 4, 2024

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नेत्रहीन बच्चों की जिंदगी में रंग भर रही है "एक कदम और संस्था", पाँच सालों से ब्रेल लिपि व टेलर फ्रेम से दे रहे शिक्षा
नेत्रहीन बच्चों की जिंदगी में रंग भर रही है "एक कदम और संस्था", पाँच सालों से ब्रेल लिपि व टेलर फ्रेम से दे रहे शिक्षा
घातक रिपोर्टर, शिवेंद्र सिंह सेंगर, उत्तर प्रदेश।
औरैया। ईश्वर की सबसे खूबसूरत देन है आंखें, आंखों के बिना इस रंगीन दुनिया का सफर पूरा नहीं किया जा सकता। इसी कमी को पूरा करने के लिए और नेत्रहीन बच्चों की जिंदगी में रंग भरने के लिए उत्तर प्रदेश के औरैया जिले में एक संस्था द्वारा नेत्रहीन मासूमों को मुफ्त में उनके घरों में ही शिक्षा प्रदान कारवाई जा रही है। औरैया जिला में 'एक कदम और फाउंडेशन संस्था' पिछले कई सालों से नेत्रहीन बच्चों को फ्री शिक्षा प्रदान करवा कर पास के स्कूल में दाखिला करवाती है तथा शैक्षिक सहयोग प्रदान करती है। इस संस्था में कुल आठ अध्यापक हैं, ये सभी अध्यापक औरैया जिला में लगभग बाइस विद्यार्थियों को जीवन का न सिर्फ पाठ पढ़ा रहे हैं बल्कि उन्हें विभिन्न क्षेत्रों के लिए तैयार करने में भी जुटे हैं। यहां के अध्यापकों ने बताया कि उनका मुख्य फोकस बच्चों को आत्मनिर्भर बनाना है।
'एक कदम और फाउंडेशन' के सभी टीचर कई सालों से नेत्रहीन बच्चों को पढ़ा रहे हैं और वह ब्रेल लिपि और गणित में टेलर फ्रेम के माध्यम से नेत्रहीन बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं। एक कदम और में कक्षा 1 से लेकर कक्षा 8 तक की पढाई कराई जाती है। एक कदम और के टीचर बाबू सिंह बताते हैं कि नेत्रहीन बच्चों को कोई पढ़ाना नहीं चाहता, क्योंकि उनको लगता है कि नेत्रहीन बच्चे पढ़कर क्या करेंगे, कोई उन्हें स्कूल नहीं भेजना चाहता। कुछ सरकारी स्कूलों में उपेक्षित सहयोग भी नहीं मिलता है। एक कदम और संस्था की सौम्या त्रिपाठी ने बताया कि यह संस्था पिछले 6 सालों से चल रही है और इस संस्था को डॉ. सतीश त्रिपाठी द्वारा स्थापित किया गया है, वो अमेरिका में वैज्ञानिक हैं। वो देश एवं दुनिया की सभी नेत्रहीन शिक्षा से वंचित बच्चों को शिक्षा से जोड़कर सफल बनाना चाहते हैं।
दृष्टीबाधितों के मसीहा एवं ब्रेल लिपि के आविष्कारक लुई ब्रेल
संस्था के अध्यापक बाबू सिंह ने ब्रेल दिवस पर लुई ब्रेल के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बच्चों को बताया कि दृष्टीबाधितों के मसीहा एवं ब्रेल लिपि के आविष्कारक लुई ब्रेल का जन्म 4 जनवरी 1809 को फ्रांस के छोटे से गाँव कुप्रे में हुआ था। लुई ब्रेल की आँखों की रोशनी महज तीन साल की उम्र में एक हादसे के दौरान नष्ट हो गई। परिवार में तो दुःख का माहौल हो गया, क्योंकि ये घटना उस समय की है जब उपचार की इतनी तकनीक इजात नही हुई थी जितनी कि अब है। बालक लुई बहुत जल्द ही अपनी स्थिती में रम गये थे। बचपन से ही लुई ब्रेल में गजब की क्षमता थी और उन्होंने ब्रेल के माध्यम से पढ़ने की प्रणाली का आविष्कार किया था। हम सब ब्रेल प्रणाली को व उनके आविष्कार को सलाम करते हैं और आशा करते हैं कि हर दृष्टिबाधित बच्चा इसकी पहुंच प्राप्त करेगा और बड़ा होकर लुई ब्रेल की तरह आत्मनिर्भर और सफल बनेगा।
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