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Monday, February 5, 2024

राजनैतिक : सपा के निर्णय से सियासी भंवर में फंसी स्वामी प्रसाद मौर्य और उनकी बेटी की सियासी विरासत

राजनैतिक : सपा के निर्णय से सियासी भंवर में फंसी स्वामी प्रसाद मौर्य और उनकी बेटी की सियासी विरासत

राजनैतिक : सपा के निर्णय से सियासी भंवर में फंसी स्वामी प्रसाद मौर्य और उनकी बेटी की सियासी विरासत

घातक रिपोर्टर, शिवेंद्र सिंह सेंगर, उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश। लोकसभा चुनाव अब सिर पर है।कभी भी लोकसभा चुनाव का बिगुल बज सकता है।सभी राजनीतिक पार्टियां लोकसभा चुनाव में विजय पताका फहराने के लिए कमर कसकर जुट गई हैं।समाजवादी पार्टी ने लोकसभा चुनाव 2024 के मद्देनजर 16 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। इस घोषणा ने चुनावी वैज्ञानिक स्वामी प्रसाद मौर्य और उनकी सांसद बेटी संघमित्रा मौर्य की सियासी नाव को सियासी भंवर में फंसा दिया है। स्वामी अपनी बेटी के सियासी भविष्य के लिए कौन सा रास्ता तय करेंग। यह सवाल राजनीतिक गलियारे में चर्चा का विषय बना हुआ है। फिलहाल स्वामी के सामने अपने और बेटी संघमित्रा के सियासी भविष्य का सवाल खड़ा है। सियासती पंडित बताते हैं कि सपा ने बदायूं से धर्मेंद्र यादव को उम्मीदवार बनाकर स्वामी प्रसाद मौर्य के सामने दुविधा पैदा कर दी है कि वे अपनी पीढ़ी को आगे बढ़ाएं या पार्टी धर्म का पालन करें।

पिता के लिए बेटी ने भाजपा के विरोध में किया प्रचार
संघमित्रा मौर्य साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के टिकट से पहली बार बदायूं की सांसद बनी थी। इस चुनाव में संघमित्रा को जिताने के लिए स्वामी प्रसाद ने अपनी पूरी ताकत लगा दी थी। 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में अचानक स्वामी प्रसाद मौर्य भाजपा छोड़कर सपा में चले गए। स्वामी भाजपा के खिलाफ कुशीनगर से चुनाव भी लड़े। उस समय संघमित्रा ने अपनी पार्टी भाजपा का साथ न देकर पिता के पक्ष में प्रचार किया था। इस बात का स्थानीय स्तर पर काफी विरोध होने के बावजूद भाजपा ने संघमित्रा को पार्टी से नहीं निकाला था। संघमित्रा अभी भाजपा में खूब सक्रिय नजर आ रही हैं।

संघमित्रा को टिकट मिला तो धर्म संकट में पड़ जाएंगे पिता और पुत्री
यदि भाजपा ने संघमित्रा को एक बार फिर से बदायूं से टिकट देती है तो संघमित्रा और धर्मेंद्र यादव आमने-सामने होंगे। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि स्वामी प्रसाद मौर्य क्या करेंगे। स्वामी बेटी संघमित्रा का साथ देंगे या पार्टी के प्रति अपनी निष्ठा साबित करते हुए धर्मेंद्र यादव के पक्ष में प्रचार करेंगे। स्वामी की एक के बाद एक सनातन धर्म पर टिप्पणियों से धर्म प्रेमियों में उनके प्रति खासी नाराजगी है।

धर्म संकट के लिए स्वामी खुद जिम्मेदार
बता दें कि कि स्वामी प्रसाद मौर्य और उनकी बेटी संघमित्रा की सियासत बड़ी दुविधा भरी है। इसके जिम्मेदार कहीं न कहीं स्वामी प्रसाद मौर्य खुद ही हैं। अच्छा खासा स्वामी प्रसाद मौर्य भाजपा में कैबिनेट मंत्री थे,लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में स्वामी प्रसाद मौर्य ने भाजपा छोड़कर पार्टी के सामने काफी बड़ा संकट खड़ा किया।इसमें बेटी संघमित्रा ने भी उनका साथ दिया। संघमित्रा अपनी पार्टी छोड़ सपा की कार्यकर्ता बन गई थीं। वहां तक तो फिर ठीक था,लेकिन बाद में स्वामी प्रसाद ने सनातन के खिलाफ जो बयानबाजी की है। वह उनके लिए और भी घातक होती जा रही है। उसको दोनों तरफ के लोग नहीं पचा पा रहे हैं।

पिछले चुनाव में धर्मेंद्र को मिली थी हार
बताते चलें कि 2019 में भाजपा की संघमित्रा मौर्य ने सपा मुखिया अखिलेश यादव के भाई और सपा के उम्मीदवार धर्मेंद्र यादव को 30 हजार वोटों से हराया था। भाजपा को जहां 5 लाख से ज्यादा वोट मिले थे। वहीं सपा को 4 लाख 91 हजार वोट मिले थे।

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