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Friday, July 2, 2021

कविता - कौन सा वक्त

कविता - कौन सा वक्त

कविता - कौन सा वक्त

न जाने कौन सा वक्त है, जो वक्त के साथ
सब कुछ डलता जा रहा है।
न जाने कौन सा वक्त है, जो वक्त के साथ
सब कुछ बदलता जा रहा है।
न जाने कौन सा वक्त है, जो वक्त के साथ
सब कुछ खामोश करता जा रहा है।
न जाने कौन सा वक्त है, जो वक्त के साथ
सब कुछ ठहरता जा रहा है।
न जाने कौन सा वक्त है, जो वक्त के साथ
जो सब कुछ छीनता जा रहा है।
न जाने कौन सा वक्त है, जो वक्त के साथ
सब कुछ नजर अंदाज करता जा रहा है।

राजीव डोगरा 'विमल'
कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश

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