रायसेन/सिलवानी, भगवान का नित्य दर्षन करने से वीतरागता का भाव आता है - मुनि समता सागर। - Ghatak Reporter

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Monday, September 20, 2021

रायसेन/सिलवानी, भगवान का नित्य दर्षन करने से वीतरागता का भाव आता है - मुनि समता सागर।

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भगवान का नित्य दर्षन करने से वीतरागता का भाव आता है - मुनि समता सागर।

  • पर्युषण पर्व की समाप्ति पर श्रीजी का निकाला गया चल समारोह।

रायसेन/सिलवानी, भगवान का नित्य दर्षन करने से वीतरागता का भाव आता है - मुनि समता सागर।

घातक रिपोर्टर, जसवंत साहू, रायसेन/सिलवानी।
सिलवानी। आतम कल्याण के पर्व पर्युषण पर्व की समाप्ति पर अखण्ड दिगंबर जैन समाज के द्वारा सोमवार को मुनि समता सागर महाराज व ऐलक निष्चय सागर महाराज के सानिध्य में भव्य चल समाराकह निकाला गया। चल समारोह में बड़ी संख्या में समाजजन शामिल हुए। दोपहर के समय बुधवारा बाजार से चल समारोह प्रारंभ हुआ। लेजम बजाते हुए युवा समारोह को गरिमा प्रदान कर रहे थे। अश्व पर पचरंगी ध्वजा लिए समाजजन सवार थे। यहां पर समाजजन श्रीजी, आचार्य विद्यासागर  महाराज, मुनि समता सागर महााज, ऐलक निष्चय सागर महाराज का जयकारा लगाते हुए चल समारोह के साथ विभिन्न मार्गो से गुजरते हुए त्रिमूर्ति चौबीसी दिगंबर जैन मंदिर पहुंचे।

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यहां पर श्रीजी की आरती उतारी गई। तत्पश्चात चल समारोह मुख्य मार्गो से होता हुआ पाण्डुक शिला पहुंचा। यहां पर भी अनुष्ठान पूर्ण किए जाकर चल समारोह विभिन्न मार्गो से होता हुआ प्रारंभिक स्थल पर पहुंच कर समाप्त हो गया। पार्ष्वनाथ जिनालय में भगवान श्रीजी को झूले में झूलाया गया। चल समारोह में शामिल समाजजन चांदी जडि़त विमान मेें श्रीजी की मूर्ति को रखे हुए शामिल हुए। विमान में श्रद्वा पूर्वक विराजित की गई भगवान की मूर्ति का अनेको स्थानो पर समाजजनो के द्वारा आरती पूजन किया गया। चल समारोह में शामिल महिलाए, युवा, बालिकाए मंगल भजनो का गायन कर रही थी जबकि युवक डीजे पर बज रहे भक्ति गीतो पर नृत्य करते हुए चल रहे थे।

रायसेन/सिलवानी, भगवान का नित्य दर्षन करने से वीतरागता का भाव आता है - मुनि समता सागर।

भगवान का नित्य दर्षन करने से वीतरागता का भाव आता है - मुनि समता सागर

त्रिमर्ति जिनालय में संक्षिप्त आशीष वचन मे मुनि समता सागर महाराज ने बताया कि नित्य प्रति जिनालय जाने, भगवान की आराधना, दर्षन, आरती, शांतिधारा, स्वाघ्याय आदि अनुष्ठान किए जाने से भगवान बनने की भावना आती है। वही वीतरागता का भाव भी मन में उत्पन्न होता है। दान धार्मिक कार्यो के लिए किया जाना चाहिए बल्कि समाज के जरुरतमंद, निर्धन, असहाय की भी मदद करनी चाहिए। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में समाजजन शामिल हुए।

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