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Monday, October 11, 2021

रायसेन/सिलवानी, भक्त और भगवान के प्रेम में ऐसा बल है कि निष्काम को साकाम और निराकार को साकार बनन पड़ता है - पंडित सुंदर दास महाराज।

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भक्त और भगवान के प्रेम में ऐसा बल है कि निष्काम को साकाम और निराकार को साकार बनन पड़ता है - पंडित सुंदर दास महाराज।

  • चीचोली गांव में आयोजित की जा रही कथा का पचंम दिवस।

रायसेन/सिलवानी, भक्त और भगवान के प्रेम में ऐसा बल है कि निष्काम को साकाम और निराकार को साकार बनन पड़ता है - पंडित सुंदर दास महाराज।

घातक रिपोर्टर, जसवंत साहू, रायसेन/सिलवानी।
सिलवानी। श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण करने से भक्तो का कल्याण हो जाता है। लोगो को श्रीमद् भागवत पुराण का श्रवण करना चाहिए। कथा का श्रवण किए जाने से मन में व्याप्त विकारो का समन होता है, बल्कि मानव को आत्म शांति भी प्राप्त होती है। नियमित रुप से कथा का श्रवण किया जावे तो आत्म शांति के साथ ही दैहिक, दैविक व भौतिक तापो से भी शांति मिलती है। यह उद्गार चीचोली गांव में पंडित सुंदर दास महाराज ने श्रद्वालुओ को कथा श्रवण कराते हुए व्यक्त किए। पंचम दिवस कथा श्रवण करने बड़ी संख्या में श्रद्वालु पहुचें तथा वयास गादी की पूजा अर्चना की। कथा वाचक ने बताया कि भक्ति ज्ञान बैराग्य की यह कथा कलियुग में श्रीकृष्ण की भक्ति प्रधान होती है। कथा श्रवण किए जाने को आवष्यक बताते हुए उन्होने कहा कि श्रीमद् भागवत ग्रंथ में सद्कर्म से सौभाग्य के निर्माण के महत्व का पता चलता है। भगवान श्रीकृष्ण ने भारत भूमि पर कर्मयोग का महत्व बताकर दुनिया को कर्मषील रहने की प्रेरणा दी। उन्होने बताया कि भगवान भक्तों की प्रेम की डोरी से बंधते हैं। प्रेम एवं भक्ति से भगवान भी भक्त के अधीन हो जाते हैं। प्रेम और सेवा के बिना भक्ति सफल नहीं हो पाती। भक्त और भगवान के प्रेम में ऐसा बल है कि निष्काम को साकाम और निराकार को साकार बनन पड़ता है। पं. सुंदरदास ने कथा को विस्तार देते हुए कहा कि ईश्वर के साथ प्रेम करो। ईश्वर जीव से प्रेम की मांग करते हैं। पंडित सुंदर दास महाराज ने बताया कि श्रीमद् भागवत कथा में अनेक कथाओं का वर्णन किया जाता है। दान का बड़ा महत्व हैं, हमेशा धर्म मे दान करें जिससे जीवन में अनेक खुशियां आती हैं। जीव आत्मा का परमात्मा से मिलन जब ही हो सकता हैं जब जीव आत्मा परमात्मा की भक्ति में लीन हो। पंडित सुंदर दास महाराज ने भक्तों को भगवान श्री कृष्ण की बाल लीला का वर्णन करते हुए कहा कि कृष्ण का अवतार होने के बाद कंस ने उनको मारने का बहुत प्रयत्न किया, अपनी राज्य की सर्वाधिक बलवान राक्षस पूतना को भेजता है। पूतना भेष बदलकर भगवान श्री कृष्ण को अपने स्तन से जहरीला दूध पिलाने का प्रयास करती है। लेकिन भगवान श्री कृष्ण उसको मौत के घाट उतार देते हैं। उसके बाद कार्तिक माह में ब्रजवासी भगवान इन्द्र को प्रसन्न करने के लिए पूजन का कार्यक्रम करने की तैयारी करते हैं। भगवान कृष्ण द्वारा उनको भगवान इन्द्र की पूजन करने से मना करते हुए गोवर्धन महाराज की पूजन करने की बात कहते हैं। इन्द्र भगवान उन बातों को सुनकर क्रोधित हो जाते हैं। वह अपने क्रोध से भारी वर्षा करते हैं। जिसको देखकर समस्त ब्रजवासी परेशान हो जाते हैं। भारी वर्षा को देख भगवान श्री कृष्ण गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा अंगुली पर उठाकर पूरे नगरवासियों को पर्वत को नीचे बुला लेते हैं। जिससे हार कर इन्द्र एक सप्ताह के बाद बारिश को बंद कर देते हैं। जिसके बाद ब्रज में भगवान श्री कृष्ण और गोवर्धन महाराज के जयकारे लगाने लगते हैं।

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